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आध्यात्मिक आलोक
पढने से तोता पिंजरे में बन्द किया जाता है, और नहीं पढ़ने से बगुला स्वच्छन्द घूमता है। मेरे ज्ञान-ध्यान का क्या लाभ ? अच्छा होता भाई की तरह मैं भी मूर्ख ही होता, तो मुझे भी कोई हैरान नहीं करता। कहा भी है
मूर्खत्वं सुलभं भजस्व कुमतेः, मूर्खस्य चाष्टौ गुणाः । निश्चिन्तो बहुभोजकोऽतिमुखरो, रात्रि दिवा स्वप्नभाक् ।।
कार्याकार्य विचारणान्धवधिरो, मानापमाने समः ।
प्रायेणामयवर्जितो दृढ़वपुः मूर्खः सुखं जीवति ।। अपने आठ गुणों के कारण मूर्ख मनुष्य आराम से अपनी जिन्दगी व्यतीत करता है। वे गुण ये हैं-0निश्चिन्तता (२) बहुभोजन ) अति मुखरता (1) बड़बड़ाना (६) करणीय-अकरणीय पर विचार न करना। जो धुन में जंचे सो करते जाना और कोई भलाई की बात कहे तो बहिरे के समान उसे अनसुनी कर देना () मान-अपमान की परवाह न करना (७) रोग रहित होना और (८) बेफिक्री के कारण हट्टा-कट्टा होना।
कहा जाता है कि इस प्रकार ज्ञानाराधना से थक कर उसने ३-३ दिन के लिये बोलना बन्द कर दिया ।
बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति कोई भी वक्तव्य देने को सहसा तैयार नहीं होगाजो बोलेगा, सोच-समझ कर ही बोलेगा । मूर्ख को सोचने-समझने की आवश्यकता नहीं होती । वह बहुत बोलेगा । और शुद्धि-अशुद्धि या सत्य-असत्य की चिन्ता नहीं करेगा। निद्रा देवी की दया मुर्खराज पर सदा बनी रहती है । वह गधे की सवारी करने पर भी अपमान अनुभव करके लज्जित नहीं होगा।
कर्मोदय के कारण वसुदेव के अन्तःकरण में दुर्भावना आ गयी । उसने ज्ञान की विराधना की । इस प्रकार दीक्षा एवं तपस्या के प्रभाव से उसने राजकुल में जन्म तो लिया किन्तु ज्ञान की विराधना करने से कोढ़ी और निरक्षरता प्राप्त की।"
आज कार्तिक शुक्ला पंचमी है। यह पंचमी श्रुतपंचमी और ज्ञानपंचमी भी कहलाती है। इसकी विधिवत् आराधना करने से और ज्ञान की भक्ति करने से कोढ़ भी नष्ट हो जाता है, ऐसा महर्षियों का कथन है ।
श्रुतपंचमी सन्देश देती है कि ज्ञान के प्रति दुर्भाव रखने से ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध होता है। अतएव हमें ज्ञान की महिमा को हृदयंगम करके उसकी आराधना करनी चाहिये। यथा शक्ति ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये। और दूसरों के पठन-पाठन में योग देना चाहिये। वह योग कई प्रकार से दिया जा सकता है। निर्धन