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आध्यात्मिक आलोक में सभी ज्योतियाँ विलीन हो जाती हैं । अपूर्णता मिट गई । अपूर्णता का कारण क्षयोपशम है और जब क्षयोपशम न रहा तो भेद भी नहीं रहा । समुद्र सरोवर, कूप, नदी आदि के जल में भाप बन जाने के बाद किसी प्रकार का भेद नहीं रहता । भारी-हल्का, खारा-मीठा, गन्दा-साफ-सभी प्रकार का जल वाष्प बन जाने पर एकरूप हो जाता है । जल में विजातीय पदार्थ के संयोग से भिन्नता होती है, और उस संयोग के हट जाने पर भिन्नता दूर हो जाती है । इसी प्रकार. विजातीय द्रव्य का संयोग हटते ही सब आत्माओं का ज्ञान और सभी आत्माएं समान हो जाती हैं । उनमें किसी प्रकार की विलक्षणता नहीं रहती।
गौतम स्वामी शुद्ध आत्मस्वरूप के अधिकारी बन गए । हमें भी आत्मचिन्तन द्वारा आत्मा को शुद्ध स्वरूप में परिणत करना है ! गौतम की शुद्धि से हमें सीख लेनी है । ज्ञान के द्वारा अपने निज गुणों को शुद्ध बनाना है । यह शुद्धता सम्यक्. श्रद्धा और ज्ञान से ही प्राप्त हो सकती है ।
बन्धुओ, सत्पुरुषों का जीवन प्रदीप के समान है जो स्वयं प्रकाशित होता है और दूसरों को भी प्रकाशित करता है । साधारण मानव मिथ्या धारणाओं और गलत शक्तियों के उपयोग के कारण यों ही समाप्त हो जाता है। आयु का तेल पाकर जीवन की बत्ती जलती रहती है, मगर कोई-कोई बत्ती होली का काम कर जाती है। दीपक फटाके, बीड़ी, सिगरेट अथवा दूसरों की वस्तुओं को जलाने के काम भी आ सकता है, किन्तु दीपक का यह सही उपयोग नहीं है । वह दूसरों को जला कर स्वयं भी खत्म हो जाता है । एक दीपक वह भी होता है जो पठन-पाठन में और पथिकों को पथ दिखलाने में काम आता है । वह दीपक बुझ जाता है तो पथिक उसे याद करते हैं कि रात में भी उसने दिन के समान सुविधा दी । यह जीवन भी चलते दीपक के समान है। इससे प्रकाश प्राप्त करना चाहिए-अपने लिए तथा औरों के लिए। - भगवान महावीर 'लोकप्रदीप थे । वे स्वयं प्रकाशमय थे और समस्त जगत् को प्रकाश देने वाले थे । उस लोकोत्तर प्रदीप ने संसार को सन्मार्ग प्रदर्शित किया, कुमार्ग पर जाने से रोका और अज्ञान के अंधकार का निवारण किया । किन्तु वह प्रदीप इस लोक में नहीं रहा, उसकी स्मृति ही हमारे लिए शेष रह गई है।
__वासना और विकार की आंधी से प्रभावित दीप बुझ जायेंगे । वही दीपक अमर रहेगा जिसे वासना की आंधी स्पर्श नहीं कर सकती। . भगवती सूत्र में भगवान महावीर और गौतम स्वामी के जो प्रश्नोत्तर विद्यमान हैं, वे हमारे लिए प्रकाशपुंज हैं । भगवान ने न केवल वाणी द्वारा बल्कि