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आध्यात्मिक आलोक . विज्ञान के द्वारा आज अनेक प्रकार के आश्चर्यजनक आविष्कार हुए हैं . किन्तु यौगिक शक्ति के चमत्कारों की तुलना में वे नगण्य हैं।
प्राचीन भारतीय साहित्य भी अत्यन्त समृद्ध और परिपूर्ण था । द्वादशांगी में बारहवां अंग दृष्टिवाद बहुत विशाल था । खेद है कि आज वह उपलब्ध नहीं है। तथापि उसके वर्णित विषयों का कुछ-कुछ परिचय अन्य शास्त्रों से मिलता है । उससे । पता चलता है कि ज्ञान-विज्ञान की ऐसी कोई शाखा नहीं, जिसका दृष्टिवाद में विवेचन न किया गया हो।
___'भूवलय' नामक ग्रन्थ के विषय में आपने सुना होगा । वह एक अद्भुत ग्रन्थ है । वह अठारह भाषाओं में पढ़ा जा सकता है और संसार की समस्त विद्याएँ उसमें समाहित हैं, ऐसा दावा किया जाता है । कुछ वर्ष पूर्व भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसादजी आदि को वह दिखलाया गया था । वह एक जैनाचार्य की असाधारण प्रतिभा का प्रतीक है । कर्नाटक प्रान्त के एक जैन विद्वान् उसका परिशीलन कर रहे थे । उसके मुद्रण की योजना भी उन्होंने बनाई थी । किन्तु अचानक स्वर्गवास हो जाने के कारण वह योजना अभी तक कार्यान्वित नहीं हो सकी । इस ग्रन्थ के लेखक आचार्य का दिमाग कितना उर्वर और ज्ञान कितना व्यापक रहा होगा । यह ग्रन्थ अंकलिपि में है । दृष्टिवाद को न जानने वाले आचार्य का एक ग्रन्थ जब संसार को चकित कर सकता है तो दृष्टिवाद के ज्ञाता के ज्ञान की विशालता का क्या कहना है । वास्तव में ज्ञान असीम है, उसकी गरिमा का पार नहीं है।
हाँ, तो स्थूलभद्र के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि दर्शनार्थ आने वाली साध्वियों को क्या चमत्कार दिखलाया जाय | आखिर रूप परिवर्तन की विद्या का प्रयोग करके उन्होंने सिंह का रूप धारण कर लिया ।
___ साध्वियां मुनिराज के दर्शन के लिए पहुँची, मगर मुनिराज के दर्शन नहीं हुए। गुफा के द्वार पर एक सिंह दृष्टिगोचर हुआ । साध्वियां उसे देखकर पीछे हट गई
और वापिस लौट कर आचार्य भद्रबाहु के समीप पहुँचीं । उन्होंने उनको बतलाया"जान पड़ता है मुनिराज स्थूलभद्र कहीं अन्यत्र विहार कर गए हैं । जिस गुफा में वे साधना करते थे वहां तो हमें एक सिंह.बैठा दिखाई दिया है।"
: आचार्य इस घटना के रहस्य को समझ गए । सोचने लगे-'क्या स्थूलभद्र दृष्टिवाद के ज्ञान के पात्र हैं ? उनको दृष्टिवाद का ज्ञान देना उचित है ? जैसे कच्चे घड़े में पानी भरने से घड़ा गल जाता है-विनष्ट हो जाता है और जल की