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आध्यात्मिक आलोक से बचने का उपाय बतलाया जाता है। विक्षेप, अज्ञान, प्रमाद, आलस्य, कलह आदि से विराधना होती है।
भरतखण्ड में अजितसेन राजा का वरदत्त नामक एक पुत्र था। वह राजा का अत्यन्त दुलारा था । उसका बोध (ज्ञान) नहीं बढ़ पाया । अच्छे कलाविदों एवं ज्ञानियों आदि के पास रखने पर भी वह ज्ञानवान नहीं बन सका । उसकी यह स्थिति देखकर राजा बहुत खिन्न रहता था । सोचता था कि मूर्ख रहने पर यह प्रजा का पालन किस प्रकार करेगा।
पिता बन जाना बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है अपने पितृत्व का निर्वाह करना। पितृत्व का निर्वाह किस प्रकार किया जाता है, यह बात प्रत्येक पुरुष को पिता बनने से पहले ही सीख लेना चाहिये। जो पिता बन कर भी पिता के कर्तव्य को नहीं समझते अथवा प्रमाद वश उस कर्तव्य का पालन नहीं करते वे वस्तुतः अपनी सन्तान के घोर शत्रु हैं और समाज तथा देश के प्रति भी अन्याय करते हैं। सन्तान को सुशिक्षित और सुसंस्कारी बनाना पितृत्व के उत्तरदायित्व को निभाना है। सन्तान में नैतिकता का भाव हो, धर्म प्रेम हो, गुणों के प्रति आदरभाव हो, कुल की मर्यादा का भान हो, तभी सन्तान सुसंस्कारी कहलायेगी । मगर केवल उपदेश देने से ही सन्तान में इन सदगुणों का विकास नहीं हो सकता । पिता और माता को अपने व्यवहार के द्वारा इनको शिक्षा देनी चाहिये। जो पिता अपनी सन्तान को नीति धर्म का उपदेश देता है पर स्वयं अनीति और अधर्म का आचरण करता है, उसकी सन्तान दम्भी बनती है, नीति-धर्म उसके जीवन में शायद ही आ पाता है ।
इस प्रकार आदर्श पिता बनने के लिये भी पुरुष को साधना की आवश्यकता है। माता को भी आदर्श गृहिणी बनना चाहिये। इसके बिना किसी भी पुरुष या स्त्री को पिता एवं माता बनने का नैतिक अधिकार नहीं है ।।
राजा अजितसेन ने सोचा-'मैंने पुत्र उत्पन्न करके उसके जीवन-निर्माण का उत्तरदायित्व अपने सिर पर लिया है। अगर इस उत्तरदायित्व को मैं न निभा सका तो पाप का भागी होऊंगा । इस प्रकार सोच कर राजा ने पुरस्कार देने की घोषणा करवाई कि जो कोई विद्वान उसके राजकमार को शिक्षित कर देगा उसे. यधेष्ट पुरस्कार दिया जायेगा। मगर कोई भी विद्वान ऐसा नहीं मिला जो उस राज कुमार . को कुछ सिखा सकता । राजकुमार कुछ न सीखं सका । उसके लिये काला अक्षर भैंस बराबर हो रहा। ___ शिक्षा के अभाव के साथ उसका शारीरिक स्वास्थ्य भी खतरे में पड़ गया। उसे कोढ़ का रोग लग गया । लोग उसे घणा की दृष्टि से देखने लगे। सैकड़ों