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आध्यात्मिक आलोक
505 दवाएं चलों, पर कोढ़ न गया। ऐसी स्थिति में विवाह-सम्बन्ध कैसे हो सकता था ? कौन अपनी लड़की उसे देने को तैयार होता ? __एक सिंहदास नामक सेठ की लड़की को भी दैवयोग से ऐसा ही रोग लग गया। उस सेठ की लड़की गुणमंजरी भी कोढ़ से ग्रस्त हो गयी। वह लड़की गूंगी भी थी। उस काल में, आज के समान गूगों, बहरों और अन्धों की शिक्षा की सुविधा नहीं थी। कोई लड़का इस लड़की के साथ सम्बन्ध करने को तैयार नहीं हुआ। गूंगी और सदा बीमार रहने वाली लड़की को भला कौन अपनाता ?
एक बार भ्रमण करते हुए विजयसेन नामक एक धर्माचार्य वहां पहुंचे। वे विशिष्ट ज्ञानवान् थे और दुःख का मूल कारण बतलाने में समर्थ थे। वे नगर के बाहर एक उपवन में ठहरे । ज्ञान की महिमा के विषय में उनका प्रवचन प्रारम्भ हुआ। उन्होंने कहा-"सभी दुःखों का कारण अज्ञान और मोह है। जीवन के मंगल के लिये इनका विसर्जन होना अनिवार्य है ।" कहा गया है
अज्ञान से दुःख दूना होता।
अज्ञानी धीरज खो देता ।। मन के अज्ञान को दूर करो।
स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो।। कई लोग भयंकर विपत्ति आ पड़ने पर भी धीरज नहीं खोते तो कई साधारण ज्वर आते ही बेटी, बेटे और दामाद को तार-टेलीफोन करने लगते हैं। मृत्यु की विकराल छाया उन्हें अपने कल्पना-नेत्रों में नजर आने लगती है। अज्ञान के कारण मनुष्य अपने शारीरिक, मानसिक एवं कुटुम्ब-सम्बन्धी दुःखों को बढ़ा लेता है। इससे बचने का मुख्य उपाय यही है कि ज्ञानाराधना की जाय । ज्ञान ही समस्त बुराइयों को दूर करने का कारण है । ज्ञानाराधना से अपूर्व शान्ति और सुख की प्राप्ति होती है। सच्चे ज्ञान को ज्योति जब जगती है तो दुःखों के उलुक ठहर नहीं सकते । ज्ञान आत्मा का स्वभाव है । अतएव ज्यों-ज्यों उसका विकास होता है त्यों-त्यों विभाव-परिणति विलीन होती जाती है।
कई लोगों में ज्ञानाराधना में विघ्न डालने की वृत्ति पाई जाती है। कई लोग स्वाध्याय करने वालों का उपहास करते हैं। मगर ताश, शतरंज और चौपड़ खेलने में समय नष्ट करने वालों का उपहास करने अथवा उनका यह व्यसन छुड़ा देने का प्रयत्न नहीं करते । स्मरण रखिये कि ज्ञान के मार्ग में बाधा डालने या रुकावट डालने से अशुभ कमों का बन्ध होता है और ऐसा करने वाले लोग मन्दमति,