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आध्यात्मिक आलोक कई दिनों से जो कथानक रुक गया है, उस ओर भी ध्यान देना है । बतलाया जा चुका है कि आचार्य संभूतिविजय का स्वर्गवास हो गया और यह दुस्संवाद सुनकर महामुनि भद्रबाहु नेपाल से लौट आए । स्थूलभद्र भी साथ आए । उनकी सातों भगिनियाँ स्थूलभद्र के दर्शनार्थ आईं। वे एकान्त में साधना कर रहे थे। उस समय आचार्य भद्रबाहु ने कहा-"चाहो तो उनके दर्शन कर सकती हो।"
भगिनियाँ तो दर्शन करने के लिए उत्कठित थी ही, साथ ही उन्हें यह जानने की भी बड़ी अभिलाषा थी कि देखें मुनिराज स्थूलभद्र कैसी साधना कर रहे हैं ? अब तक उन्होंने क्या अभ्यास किया है ? क्या स्थिति है उनकी? इस प्रकार की उत्कंठा और प्रेरणा से वे स्थूलभद्र के पास पहुँची ।
उधर स्थूलभद्र ने अपनी भगिनियों को आते देख विचार किया-'इन्हें कुछ चमत्कार दिखलाना चाहिए । मैंने जो कुछ प्राप्त किया है, उसमें से जो कुछ दिखलाने योग्य है, उसकी बानगी दिखला देना चाहिए । अन्यथा इन्हें कैसे पता चलेगा कि नेपाल जैसे दूर देश में जाकर मैंने क्या प्राप्त किया है ? इस प्रकार विचार करके स्थूलभद्र गुफा के द्वार पर सिंह का रूप धारण करके बैठ गए।
भगिनियाँ बड़ी उत्कंठा के साथ महासाधक स्थूलभद्र के दर्शन को जा रहीं थीं । वह स्थान एकान्त भयानक एवं जनहीन वन्य प्रदेश था । मगर तपोव्रती जिस वन प्रदेश में निवास करता है उसकी भयानकता कम हो जाती है, यहां तक कि एक बालक भी वहां जा सकता है। साध्वियां निर्भय होकर उसी ओर चली जा रही थीं।
योगसाधना का सबसे बड़ा विघ्न लोकषणा है । यो की साधना करते-करते साधक में अनेक प्रकार की विस्मयजनक शक्तियां उत्पन्न हो जाती हैं । योग शास्त्र के कर्ता-आचार्य हेमचन्द्र ने योग के माहात्म्य को प्रदर्शित करते हुए लिखा है
योगः सर्वविपदवल्ली-विताने परशुः शितः । अमूलमन्त्रतन्त्रञ्च, कार्मणं निवृत्तिश्रियः ।। भूयासोऽपि पापमानः, प्रलयं यान्ति योगतः । चण्डवाताद घनघटना, घनाघनघटा इव ।।
कफविपुण्मलामर्श-सौषधमहर्दयः
सभिन्न प्रोतोपलब्धिश्च, योग ताण्डवाडम्बरम्।। .. अर्थात्-योग समस्त विपत्तिरूपी लताओं के वितान को छेदन करने वाला तीक्ष्ण कुल्हाड़ा है और मुक्ति रूपी लक्ष्मी को वशीभूत करने के लिए बिना मंत्र-तंत्र