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आध्यात्मिक आलोक
___495 ही देह धारण के लिए आहार ग्रहण करता है, जिसने पक्षी के समान संग्रह एवं संचय की इच्छा का भी त्याग कर दिया है, जो लाभ-अलाभ में समभाव रखता है और
अपने आदर्श-जीवन एवं वचनों से जगत् को शाश्वत कल्याण का पथ प्रदर्शित करता . है, वह दान का उत्कृष्ट पात्र है । ऐसा सत्पात्र जिसे मिल जाए वह महान
भाग्यशाली है।
___ सुपात्र को दान देना विष में से अमृत निकालना है । गृहस्थ आरम्भ-समारम्भ करके दोष का भागी होता है किन्तु अपने निज के लिए किया हुआ वह दोष भी साधु को दान देने से महान् लाभ का कारण बन जाता है । इस दृष्टि से बारहवें व्रत का विशेष महत्त्व है ।
बारहवें व्रत के भी पांच अतिचार हैं, जिनसे बचने पर ही व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त किया जा सकता है । वे अतिचार निम्नलिखित हैं, जो ज्ञेय हैं पर आचरणीय नहीं।
(१) देय वस्तु को उचित पदार्थ पर रख देना : त्यागी जन पूर्ण अहिंसा परायण और आरम्भ के त्यागी होने के कारण ऐसी किसी वस्तु को ग्रहण नहीं करते जिनसे किसी भी छोटे या मोटे जीव की विराधना होती हो । अतएव दान देते समय दाता को विशेष सावधानी रखनी पड़ती है । गृहस्थ विवेकशील न होगा तो वस्तु के विद्यमान होने पर भी दान का लाभ नहीं प्राप्त कर सकेगा । सचित्त फल, फूल, पत्र, पानी आदि के ऊपर यदि खाद्य पदार्थ रख दिया जाता है तो उसे साधु नहीं ग्रहण करते, क्योंकि उससे एकेन्द्रिय जीवों को आघात पहुँचता है । अतएव ऐसा करना साधु के लिए अन्तराय का कारण हो जाता है | गृहस्थ को हल्दी, मिर्च, धनिया आदि बहुत-सी चीजें रखनी पड़ती हैं पर सचित्त के साथ उन्हें नहीं रखना चाहिए । साधु को सोंठ चाहिए । वह सोंठ यदि सचित्त पदार्थ के साथ रखी है तो साधु के लिए अन्तराय होगा । अतएव जो गृहस्थ और विशेषतः श्राविका विवेकवति है उसे सचित्त एवं अचित्त पदार्थों को मिलाकर नहीं रखन चाहिए। ऐसा करने से उसे साधु को दान देने का अवसर मिल सकता है और सहज ही लाभ कमाया जा सकता है।
(२) सचित्त से ढक देना : अचित्त वस्तु पर कोई भी सचित्त वस्तु रख देना भी इस व्रत का अतिचार है । ऐसा करने से भी वही हानि होती है जो प्रथम अतिचार से होती है अर्थात गृहस्थ दान से और दान के फल से वंचित रह जाएगा।