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आध्यात्मिक आलोक
___457 करते हैं । जिस पर्व का सम्बन्ध वीतराग पुरुष के साथै हो, उसे रागवर्द्धक ढंग से मनाना वे उचित नहीं मानते । वे सोचते हैं कि यदि पर्व को राग वृद्धि में लगा दिया गया तो पर्व को मनाने का क्या लाभ है ? संसारी प्राणी का समग्र जीवन ही राग-द्वेषवर्द्धक कार्यों में लगा रहता है, अगर पर्व को भी ऐसे ही कार्यों में व्यतीत कर दिया जाय तो पर्व की विशेषता ही क्या रहेगी? जो पर्व को आमोद-प्रमोद में सीमित कर देते हैं, वास्तव में वे पर्व से कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं करते ।
विवेक का तकाजा है कि इस प्रकार के अवसर का कुछ ऐसा उपयोग किया जाय जिससे आत्मा के स्वाभाविक गुणों का विकास हो, राग-द्वेष की परिणति . में न्यूनता आए; जीवन मंगल का साधन बन जाए और. आत्मोत्थान के पथ पर अधिक नहीं तो कुछ कदम आगे बढ़ सकें।
बालक हँसना, गाना, खाना, पीना आदि चहल-पहल हो तो पर्व मानता है परन्तु समझदार का पर्व अन्तर्मुखी होता है । वह देखना चाहता है कि इन लहरों का मंगलमय रूप क्या है ? वह पर्व को शाश्वत एवं वास्तविक कल्याण का साधन बनाता है। मगर सर्वसाधारण लोग ऐसी चिन्ता नहीं करते । यह चेतना तो उन्हीं प्रबुद्धजनों में जागृत होती है जिनके जीवन में तीन विषय तृष्णा और कामना नहीं है ।
सत्यपुरुषों के चरण-चिन्हों पर चलकर हम भी अपना उत्थान कर सकते हैं। उनके चरण-चिन्हों को पहचानने के लिए ही पर्वो का आयोजन किया जाता है । अतएव हमें देखना चाहिए कि किस पर्व की क्या विशेषता है और उसके पीछे क्या महत्व छिपा है ?
एक रूप बाह्य प्रकाश का है, दूसरा आन्तरिक प्रकाश का । एक आज चमक कर कल समाप्त हो जायेगा, दूसरा शाश्वत रहेगा।
दीपावली का यह सन्देश है कि दीपक-प्रकाश के अभाव में अन्धेरी रात में घूमने वाला भटक जाएगा, इसी प्रकार ज्ञान की रोशनी में न चलने वाला टक्करें खाकर अपना विनाश बुला लेगा ।
भगवान महावीर जन्म से ही अवधिज्ञान नामक अतीन्द्रिय ज्ञान से सम्पन्न थे। दीक्षा अंगीकार करते ही उन्हें मनःपर्याय ज्ञान भी प्राप्त हो गया था । किन्तु वे इतने ही से सन्तुष्ट न हुए। उन्होंने परिपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए उग्र तपश्चरण किया
और उसे प्राप्त किया। पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् वे दूसरों को भी ज्ञान देने में समर्थ हुए । इसी कारण उन्हें ज्ञान का दीपक कहा गया है ।