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आध्यात्मिक आलोक भव्य जीव भगवान की वाणी के अमृत का पान करके अपने को कृतार्थ करते हैं। जो सम्यग्दृष्टि हैं या जिनका मिथ्यात्व अत्यन्त तीव्र नहीं है, वे उस उपदेश से लाभ उठाते हैं । धन्य हैं वे भद्र और पुण्यशाली जीव जिन्हें तीर्थंकर देव के समवसरणं में प्रवेश करके उनके मुखारविन्द से देशना श्रवण करने का सुयोग मिलता
इन्द्रभूति गौतम, नौ मल्ली और नौलिच्छवी राजा आदि ऐसे ही भाग्यवानों की गणना में थे । उन्होंने प्रभु के पावन प्रवचन-पीयूष का आकंठ पान किया । भगवान् के उपदेश की अखण्ड धारा प्रवाहित हो रही थी । पुट्ठ वागरण और अपुट्ठ वागरण दोनों का सिलसिला चालू था । शुभ और अशुभ कार्यों के विपाक कैसे होते हैं, यह प्ररूपणा चल रही थी।
. बन्धुओ | शुभ और अशुभ को वास्तविक रूप में समझ लेना बहुत बड़ी बात है । जो अशुभ को समझ लेता है वह अशुभ की ओर प्रवृत्ति करने से रुक . जाता है । काम, क्रोध आदि के कटुक परिपाक यदि समझ में आ जाएं तो उनकी
और जीव का झुकाव ही नहीं हो सकता । टिमटिमाते प्रकाश में बिच्छू को देख कर कोई उसके ऊपर हाथ नहीं रखता, क्योंकि यह बात जानी हुई है कि बिच्छू डंक मारने वाला विषैला जन्तु है । उसे पकड़ने और बाहर ले जाकर छोड़ने के लिए चिमटे का उपयोग किया जाता है ।
- पुरस्कार देने पर भी कोई सांप के बिल में हाथ नहीं डालेगा, क्योंकि. सर्पदंश की भयानकता से सभी परिचित हैं, असत्य भाषण करने या अशिष्ट व्यवहार करने से पुरस्कार नहीं मिलता, फिर भी लोग ऐसा करते हैं । इसका एकमात्र प्रधान कारण यही है कि बिच्छू या सर्प के दंश से जैसी प्रत्यक्ष एवं तत्काल हानि होती है, वैसी असत्य भाषण, क्रोध आदि से प्रतीत नहीं होती । साधारण जनों की दृष्टि बहुत सीमित होती है । वे तात्कालिक हानि-लाभ को तो समझ लेते हैं, मगर भविष्य के हानि-लाभ की परवाह नहीं करते । दीर्घ दृष्टि की एक नजर वर्तमान पर रहती है तो दूसरी नजर भविष्य पर भी रहती है । जिस मनुष्य ने विष के समान पाप को भयजनक समझ लिया है, उसकी पाप में प्रवृत्ति नहीं होगी । सत्य यह है कि पापाचरण का परिणाम विष से असंख्यगुणित हानिकारक और भयप्रद है ।
नादान बच्चे को, माता-पिता को आग, बिच्छ, सांप से डराना पड़ता है, बड़े बच्चे को डराना नहीं पड़ता, क्योंकि वह उनसे होने वाले अनर्थ से परिचित है। इसी प्रकार धार्मिक क्षेत्र में पाप-पुण्य को समझ लेने से ज्ञानी पुरुष पाप से स्वयं बचता रहता है । वह उसे जहर से भी ज्यादा संकटजनक मानता है । पाप, कामना और