________________
452 .
आध्यात्मिक आलोक योगाचार्य ऋषि पातंजलि के बताये हुए योग के आठ अंगों में-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि परिगणित हैं । योग की अन्तिम अवस्था समाधि है । समाधि-अवस्था को प्राप्त करने के लिए सामायिक व्रत का अभ्यास आवश्यक है।
सामायिक व्रत के स्वरूप पर गहराई से विचार करेंगे तो प्रतीत होगा कि इसमें योगांगों का सहज ही समावेश हो जाता है । योग का प्रथम अंग यम है। . यम का अर्थ है अहिंसा आदि व्रत । कहा भी है-'अहिंसा सत्यास्तेय ब्रह्मचर्यापरिग्रहाः यमाः ।' सामायिक में भी हिंसा, असत्य, चौर्य, कुशील और ममत्व का त्याग किया जाता है । इस प्रकार सामायिक में योग के प्रथम अंग का अनायास ही अन्तर्भाव हो जाता है ।
सामायिक में प्रभुस्मरण, स्वाध्याय आदि का अभ्यास किया जाता है जो योग का नियम नामक दूसरा अंग है।
सामायिक के समय शरीरिक चेष्टाओं का गोपन करके स्थिर एक आसन से साधना की जाती है | चलासन और कुआसन सामायिक के दोष माने गए हैं । अगर कोई पद्मासन या वज्रासन आदि से लम्बे काल तक न बैठ सके तो किसी भी सुखद एवं समाधिजनक आसन से बैठे किन्तु स्थिर होकर बैठे । पलथी आसन या उत्कुटुक आसन से भी बैठा जा सकता है। किन्तु बिना कारण बार-बार आसन न बदलते हुए स्थिर बैठना चाहिए । .
योगाचार्य ने योग के ८४ आसन बतलाए हैं किन्तु कौन किस आसन का प्रयोग करके साधना करे, इस सम्बन्ध में किसी प्रकार का आग्रह न रखते हुए . 'सुखासनम्' के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है । जिस आसन से सुखपूर्वक बैठा जाय और जिसके प्रयोग से चित्त में शान्ति रहे वही उपयुक्त आसन है । रुग्णावस्था में जब बैठने की शक्ति न हो तो दण्डासन से लेटकर भी साधना कर सकते हैं । इस प्रकार आसन के अभ्यास में योग का तीसरा अंग आ जाता है। .
ध्यान में लोगस्स सत्र आदि का चिन्तन बतलाया गया है । यदि उसमें सांस को बिना तोड़े धीरे-धीरे स्मरण. को बढ़ाया जाय तो अनायास ही प्राण की दीर्घता प्राप्त हो सकती है । इस प्रकार सामायिक में प्राणायाम भी हो जाता है।
___महावीर स्वामी ने साढ़े बारह वर्ष पर्यन्त तीव्र तपश्चर्या करके वीतराग दशा प्राप्त की और सामायिक का साक्षात्कार किया। उन्होंने संसार को यह सन्देश दिया कि यदि शान्ति, स्थिरता और विमलता प्राप्त करनी है तो सामायिक की साधना करो।