________________
432
आध्यात्मिक आलोक . ने कहा-'बहू अच्छी है और चुनरी भी अच्छी है, मगर तुम्हारा पुत्र कहां है ? बुढ़िया • बोली-शाम को घर आता है।'
तरुण ने फिर मूर्खता का परिचय देते हुए कहा-"यदि पुत्र की गमी का . समाचार आ जाय तो?"
यह अमंगल वाणी सुनकर बुढ़िया के क्रोध की सीमा न रही । वह पानी का घड़ा उसके ऊपर पटकने को तैयार हो गई किन्तु अभ्यागत समझ कर रुक गई। कपड़े में घूघरी देकर उसे घर से भगा दिया ।
रास्ते में घुघरी का पानी टपकते देख किसी ने पूछा-'यह क्या झर रहा
उसने उत्तर में कहा-"जिभ्या का रस झरे, बोल्या बिना नहीं सरे ।"
इस दृष्टान्त से हमें सीख लेनी चाहिए कि-वाणी मित्र बनाने वाली होनी चाहिए, मित्र को शत्रु बनाने वाली नहीं ।
ऊपरी दृष्टि से ऐसा प्रतीत होगा कि ऐसा बोलने में झूठ का पाप नहीं लगता मगर गहरा विचार करने से पता चलेगा कि बिना विचारे बोली गई वाणी असुहावनी तथा बेसुरी लगती है । विनयचंदजी ने कहा है
बिना विचारे बोले बोल
ते नर जानो फूटा ढोल ।' जो मनुष्य बिना विचारे बोलता है उसका बोलना फूटे ढोल की आवाज के समान है। उसकी कोई कीमत नहीं । अच्छी वाणी वह है जो प्रेममय मधुर और प्रेरणाप्रद होती है।
वचनों के द्वारा ही मनुष्य के आन्तरिक रूप का साक्षात्कार होता है । मनुष्य जब तक बोलता नहीं तब तक उसके गुण-दोष प्रकट नहीं होते, मगर उसके मुख से निकलने वाले थोड़े से बोल ही उसकी वास्तविकता को प्रकट कर देते हैं। वाणी मनुष्य के मनुष्यत्व की कसौटी है। कहा गया है
ना नर गजां तें नापिए, ना नर लीजिए तोल,
परशुराम नर नार का, बोल बोल में मोल । वचन के द्वारा ही समझ लिया जाता है कि, मनुष्य कैसा है ? इसके संस्कार और कुल कैसे हैं ? '