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आध्यात्मिक आलोक
कैंची, चाकु, फावड़ा, कुदाली, कुल्हाड़ी, कटार, तलवार आदि साधन गृहस्थ को किसी वस्तु के छेदन, भेदन आदि प्रयोजनों के लिए रखने पड़ते हैं । किन्तु सदगृहस्थ उन्हें इस प्रकार रखेगा कि सहज ही दूसरा उन्हें गलत काम में न ले सके। वह बंदक में गोली भर कर नहीं रखेगा । अनिवार्य आवश्यकता के समय ही वह इनका उपयोग करेगा । इनके निर्माण का धंधा भी नहीं करेगा । इन खतरनाक औजारों को ले करके वह खुली जगह में, जहां से वे अनायास ही उठाए जा सकें और उपयोग में लिये जा सकें, नहीं रखेगा । ऐसा करना बड़े खतरे का काम है। इससे कई बार अनेक-अनेक दुःख-जनक दुर्घटनाएं हो जाती हैं । घर के बच्चे खेल के लिए उन्हें उठा सकते हैं और स्वयं उसके शिकार हो सकते हैं। दूसरे बच्चे भी उनके निशाना बन सकते हैं । अड़ौसी-पड़ौसी उन्हें उठा ले जा सकते हैं। ऐसा हो तो निरर्थक ही भीषण अनर्थ हो जाता है ।
घर में कोई आक्रमणकारी आजाए, डाकू हमला कर दें या इसी प्रकार की कोई अन्य घटना घटित हो जाय तो उन औजारों का उपयोग करना अर्थदण्ड है। अर्थदण्ड का त्याग श्रावक की व्रत मर्यादा में नहीं आता । बहू बेटी की मर्यादा की रक्षा, देश की रक्षा आदि का प्रसंग उपस्थित होने पर व्रती श्रावक कायरता प्रदर्शित नहीं करेगा । वह अहिंसा की दुहाई देकर अपने कर्तव्य से बचने का प्रयत्न भी नहीं करेगा । वह शस्त्र धारण करेगा और शत्रु का दृढ़तापूर्वक सामना करेगा । अनेक श्रावकों ने ऐसा किया है। किन्तु निरर्थक हिंसा से वह पूरी तरह बचता रहेगा । उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य न होगा जिससे बेमतलब खून-खराबा या हिंसा हो । वह बिना हेतु हिंसक साधनों को सुसज्जित करके खुली जगह में रखेगा तो स्वयं को सदा आशंका बनी रहेगी कि कोई उठा न ले । सैनिक भी यदि व्रती है तो वह खुले रूप में, जब वह अनिवार्य रूप से आवश्यक समझेगा, तभी उन शस्त्रास्त्रों का उपयोग करेगा।
तात्पर्य यह है कि अनर्थदण्ड विरमण व्रत का आराधक हिंसा के साधनों को तैयार करके अर्थात् उनके विभिन्न भागों को जोड़ कर नहीं रखता, क्योंकि उससे निरर्थक हिंसा होने की संभावना रहती है । यह हिंसा-प्रदान नामक अनर्थदण्ड का अतिचार है।
(५) उपभोग परिभोगातिरिक्तता-भोग और उपभोग की वस्तुओं का निरर्थक संग्रह करके रखना भी श्रावक के लिए अतिचार है । बढ़िया साड़ी, ओढ़नी धोती आदि देखकर आवश्यकता न होने पर भी खरीद लेना या अन्य पदार्थों का बिना प्रयोजन संग्रह करना महावीर स्वामी ने पाप कहा है । शीतकाल में गरम कपड़े