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आध्यात्मिक आलोक स्थूलभद्र का नाम सुनकर आचार्य संभूतिविजय बहुत प्रसन हुए। उन्हें लगा कि वे भद्रबाहु के ज्ञान समुद्र में से अवश्य ही बहुमूल्य रत्न प्राप्त कर सकेंगे । कई अन्य मुनियों को भी उनके साथ भेजने का निश्चय किया गया ।
जिज्ञासु मुनि बड़े साहस और उमंग के साथ आचार्य भद्रबाहु के चरणों में जा पहुँचे । उन्होंने वहां पहुँच कर निवेदन किया-"भगवन् ! हम आपकी उपसम्पदा ग्रहण करने हेतु आये हैं । हमें अपने चरणों में स्थान दीजिए | अब हम आपके नियन्त्रण और निर्देशन में रहेंगे।"
____ भद्रबाहु जैसे असाधारण गुरु को पाकर स्थूलभद्र ने अपने को कृतार्थ माना। उन्होंने सोचा-'मैं धन्य हूँ कि मुझे इस युग के सर्वश्रेष्ठ जिनागमवेत्ता, सिद्धान्त के पारगामी महामुनि से ज्ञानलाभ करने का सुयोग मिला है ।' उधर भद्रबाहु स्वामी भी सुपात्र शिष्य पाकर प्रसन्न थे।
पूर्वकाल में ज्ञान देने के लिए पात्र-अपात्र का बहुत ध्यान रखा जाता था। अपात्र को विद्या देना उसके लिए और दूसरों के लिए भी हानिकारक समझा जाता था । सुपात्र न मिलने के कारण कई विद्याएं न दी गई और वे नामशेष हो गई। वे विद्याएं विद्यावानों केसाथ ही चली गईं पर अपात्र को नहीं दी गई। .
महामुनि भद्रबाहु ने ज्ञानार्थी मुनियों को सचित किया-'दिन और रात्रि में सात वाचनाएं दे सकूँगा-दो प्रातःकाल, दो मध्यान्ह में और तीन रात्रि में ।'
सोचने की बात है कि इतना समय श्रुतपाठन के लिए देने और साथ ही महाप्राण ध्यान की प्रक्रिया को चाल रखने पर उन्हें विश्रान्ति के लिए कितना समय बचा होगा ? मगर उन्हें अमरदीप जगाना था | श्रुत की जो अविच्छिन्न धारा उन तक पहुंची थी उसे आगे बढ़ाना था । वे भली-भाँति समझते थे कि मेरे ऊपर गुरु का जो महान ऋण है उसे चुकाने का एकमात्र उपाय यही है कि उनसे प्राप्त किया हुआ अनमोल ज्ञान किसी सुपात्र शिष्य को दिया जाय । इस प्रकार की उच्च एवं उदार विचारधारा की बदौलत ही श्रुत की परम्परा बराबर चालू रह सकी।
आचार्य भद्रबाहु ने अपने विश्राम आदि की चिन्ता न करते हुए ज्ञान-आलोक के प्रसार में महत्वपूर्ण योग प्रदान किया | आज हमें जिनेन्द्रदेव की वाणी पढ़ने और सुनने को मिल रही है, इसका श्रेय अतीत के उन महर्षियों को ही है जिन्होंने अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों में, अनेक प्रकार के संकटों का सामना करते हुए भी श्रुत की परम्परा को बनाए रखा । हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। ___उस काल की तुलना में आज श्रुत के पठन-पाठन में बहुत सहूलियत हो
है । ऐसी स्थिति में हमें चाहिए कि वीतराग भगवान की वाणी का गहराई के