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आध्यात्मिक आलोक
173 समझने से निवृत्ति हो जाती है, यद्यपि आवश्यकतावश उनका उपयोग किया जाता है । फिर भी उन्हें 'पर समझने पर बड़े बड़े बंगले सोने चांदी के बर्तन या हीरे जवाहरात के आभूषण मन को आकृष्ट नहीं कर सकते ।
श्रावक आनन्द विशाल सम्पदा पाकर भी त्याग की ओर बढ़ गया, इसका कारण उसका 'स्व पर' का ज्ञान ही था । उसने भोग का लक्ष्य जीवन निर्वाह मात्र माना । खाना, पीना और वस्त्र आदि निर्वाह के साधन हैं, आत्म-पोषण के साधन नहीं हैं । शरीर भी तो पराया और क्षण भंगुर है । शरीर के घटने-बढ़ने से जो अपना घटना-बढ़ना समझता है, वास्तव में उसे अपने सही रूप का पता नहीं है । सही रूप समझने पर मनोवृत्ति एकदम बदल जायेगी । आनन्द ने आत्म-साधना के लिए तन रूपी गाड़ी को संभाले रखना आवश्यक समझा | जैसे साइकिल या गाड़ी के गड़बड़ाने पर हवा, मरम्मत या तैल की खुराक दी जाती है । सवार गाडी में गंतव्य स्थान पर पहुँच कर, हवा पानी आदि तेल नहीं देखता किन्तु यात्रा के प्रारम्भ में ही देखा करता है । हवा एवं तेल की खुराक शौक के लिए नहीं दी जाती, किन्तु इसलिए दी जाती है कि वह सवारी-यात्रा का साधन है । इसी प्रकार शरीर
आत्म साधना की यात्रा में साधन है, अत: इसकी रक्षा भी आवश्यक है, ताकि-पूर्ण शुद्ध आत्म-स्वरूपं की प्राप्ति में वह सहायक बन सके । यदि शरीर रूपी गाडी गड़बडा गई, तो आत्म स्वरूप. प्राप्ति की यात्रा में बाधा आयेगी और लक्ष्य पर पहुँचना कठिन होगा।
एक बार गौतम स्वामी और केशीमुनि का समागम हुआ तो केशी ने पूछा-गौतम ! विशाल भवसागर में तुम्हारी नाव बेछूट दौड़ रही है, इससे तुम कैसे पार होते हो? यह सुनकर गौतम ने कहा-महाराज ! नाव दो प्रकार की होती है, एक अछिद्र और दूसरी सछिद्र वाली । इनमें जो छिद्र रहित नाव है वह पार हो जाती है । मेरी नौका छिद्र रहित है, अतः मैं विशाल सागर से निर्विघ्न पार हो रहा हूँ। फिर पूछा-नाव किसको कहते हो तो उत्तर में गौतम ने कहा कि शरीर नाव है, जीव नाविक है और संसार एक समुद्र है। सछिद्र नौका से छोटा नाला भी पार नहीं किया जा सकता । इसी प्रकार शरीर में यदि इच्छा कामना और वासना के छेद होगे तो शरीर रूपी नाव डुबो देगी, अतएव शरीर के छेद काम, क्रोधादि को बिना बन्द किए संसार सागर पार नहीं किया जा सकता । यदि नाव को संभालकर नहीं रखा गया, तो यह निश्चित रुप से डुबा देगी । इच्छा-वासना एवं कामनाओं के छिद्र से नाव में जो कर्म का पानी भर गया है, उसे बाहर निकालना होगा-अन्यथा यात्रा पूरी नहीं होगी । रावण, ब्रह्मदत्त आदि अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि उन्होंने अपनी नाव में पाप का जल भर लिया था । कीमती नाव होने पर भी यदि उसमें जल