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आध्यात्मिक आलोक
227 परीक्षार्थी परीक्षा काल में आने-जाने वालों की ओर दृष्टिपात नहीं करता और न भयभीत ही होता है । उसका लक्ष्य होता है कि कहीं मेरा प्रमाद में वर्ष खराब नहीं हो जाये। स्थूलभद्र यदि थोड़ा भी चूक जाता तो उसका जीवन बिगड़ जाता। अतएव बड़ी सावधानी से वह परीक्षा में लगा रहा ।
साधारण साधक का तो वेश्या के मुहल्ले में भी जाना शंका की दृष्टि से देखा जाता है और बात भी ठीक ही है कि गणिका की मर्म-वेधिनी दृष्टि के सामने अपने को बचाए रखने की शक्ति भी सर्व साधारण जनों में नहीं पायी जाती। मगर स्थूलभद्र को तो गुरु की आज्ञा थी। गुरु ने उन्हें योग्य समझकर ही गुरुतम भार उनके कंधो पर डाला था। आज यदि कोई साधु एकाकी स्त्री के पास बैठा रहे तो उसकी संयम शुद्धि में शंका उत्पन्न हो जाती है फिर स्थूलभद्र को कैसे आज्ञा दी गयी । साधारण मनुष्य का मन इससे चकरा सकता है, परन्तु संभूति विजय ने उनको योग्य समझा था। भगवान और गुरु की दृष्टि उनके सामने है, अतः उन्हें किसी का भय नहीं। इसी प्रकार गुरु और भगवान पर जो लोग श्रद्धा रखेंगे, तो उन्हें किसी का भय नहीं रहेगा और वे अपना कल्याण कर सकेंगे।