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आध्यात्मिक आलोक (५) तत्प्रति रूपक व्यवहार-अचौर्य व्रत का पांचवां अतिचार तत्प्रतिरूपक व्यवहार है, जिसका अर्थ है-बताना कोई अन्य माल और देना कोई अन्य माल । बढ़िया चीज दिखाना और घटिया चीज देना, असली माल की बानगी दिखा . कर नकली दे देना, यह तत्प्रतिरूपक व्यवहार है । इस प्रकार ठगाई करके खराव माल देने वाला अपनी प्रामाणिकता गंवा देता है । माल घटिया हो और उसे घटिया समझ कर ग्राहक खरीदने को तैयार हो तो बात दूसरी है क्योंकि ग्राहक अपनी स्थिति के अनुसार ऐसे माल से भी अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर लेता है। मगर अच्छा माल दिखलाकर और अच्छे का मूल्य लेकर खराब माल देना या खराव माल मिलाकर देना प्रामाणिकता नहीं है।
आवक अपने अन्तरंग और बहिरंग को समान स्थितियों में रखता है। वचन से कुछ कहना और मन में कुछ और रखना एवं क्रिया किसी अन्य प्रकार की करना श्रावक-जीवन से संगत नहीं है । श्रावक भीतर-बाहर में समान होता है । संसार में ऐसे व्यक्ति की ओर कोई अंगुलो-निर्देश भी नहीं कर सकता । इस लोक और परलोक में उसकी सद्गति होती है । कहा भी है कि
समझं शंके पाप से, अनसमझू हरपंत ।
वे लूखा वे चीकणा, इण विध कर्म वढत ।। समझदार अपना कदम सावधानी से रखता है। वह पाप से उसी प्रकार वचता है जैसे मैले से बचा जाता है । अबोध बालक मैले के ऊपर से हंसते-हंसते निकल जाता है किन्तु विवेकवान् व्यक्ति उससे दूर रहता है । इसी प्रकार समझदार हिंसा, झूठ, चोरो आदि से तथा क्रोध लोभ आदि से बच कर चलेगा । काली मिर्च या पीपल में चूहे का विष्टा मिलाने वाले क्या अपनी आत्मा को धोखा नहीं देते ?
आज भारतवर्ष में मिलावट का बाजार गर्म है । घी में वनस्पति तेल, दूध में पानी, दही में स्याही सोख, आटे में भाटे के चूरे का मिलाना तो सामान्य बात हो गई है । असली दवाओं में भी नकली वस्तुएं मिलाई जाने लगी हैं । बिना मिलावट के शुद्ध रूप में किसी वस्तु का मिलना कठिन हो गया है । इस प्रकार यह देश अप्रामाणिकता और अनैतिकता की ओर बड़े वेग के साथ अग्रसर हो रहा है । विवेकशील दूरदर्शी जनों के लिए यह स्थिति चिन्तनीय है । ऐसे अवसर पर धर्म के प्रति अनुराग रखने वालों को और धर्म की प्रतिष्ठा एवं महिमा को कायम रखने और बढ़ाने की रुचि रखने वालों को आगे आना चाहिए। उन्हें धर्मपूर्वक व्यवहार करके
दिखाना चाहिए कि प्रामाणिकता के साथ व्यापार करने वाले कभी घाटा नहीं उठाते।। . घाटे के भय से अधर्म और अनीति करने वालों को मैं विश्वास दिलाना चाहता हूँ ।