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आध्यात्मिक आलोक तीरथ गया तीन जना, कामी कपटी चोर ।
गया पाप उतारवा, लाया दस टन और । वह नगे पैरों बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ यात्रा के लिए रवाना हुआ। रास्ते में उसे एक पहुँचे हुए फकीर मिल गये । वे स्वतन्त्र विचार के पहुँचे हुए पुरुष थे । खोजा ने उन्हें सलाम किया । फकीर ने उसकी ओर देखा । खोजा ने कहा-"इबादत करने मक्का शरीफ जा रहा हूँ।"
फकीर ने कहा-"अगर मक्का शरीफ की हज़ का फायदा यहीं मिल जाय तो?"
खोजा बोला-"तब तो कहना ही क्या ! नेकी और पूछ-पूछ !"
फकीर ने उसे एक पेड़ के नीचे बैठने को कहा और सूचना दी कि बाहर की ओर से मन मोड़ लो और ध्यान लगाओ । खुदा को यहीं अन्तर्दृष्टि में लाने की कोशिश करो। अगर प्रेम की मस्ती में आ गए तो हज़ करने जाने की जरूरत नहीं होगी।
खोजा श्रद्धा वाला व्यक्ति था । उसे फकीर के वचनों पर विश्वास आ गया । भूख-प्यास, खाना-पीना सब भूल गया और मस्त हो गया। उसकी मस्ती की बात बस्ती में फैल गई । लोगों ने कहा-कोई बड़े औलिया आए हैं । और वे उसके लिए दूध, फल आदि लाने लगे, मगर उसे परवाह नहीं है किसी चीज की । खाया, खाया, न खाया न सही । वह अलमस्त होकर ध्यान में लीन रहने लगा।
बात फैलते-फैलते बादशाह के कानों तक जा पहुँची । नगर के बड़े-बड़े लोग उसके दर्शन के लिए जाने लगे । औलिया अपने स्वरूप में लीन रहने लगा। न उसे अपने शरीर का भान था, न मकान की चिन्ता थी। जैसे वह शरीर में रहता हुआ भी उससे अलग था ।
बादशाह ने सोचा-फकीर साहब के दीदार तो अवश्य करना चाहिए । अब तक वहां एक छोटी सी झोपड़ी बन चुकी थी और उसमें दरवाजे की जगह एक टाटी लग गई थी। किसी ने फकीर को बादशाह के आने की खबर दी तो फकीर ने वह टाटी बन्द कर ली और पैर फैला दिए । जब बादशाह वहां पहुंचे तो टाटी को धकियाया गया मगर टाटी नहीं खुली । बाहर से आवाज दी गई-बादशाह सलामत पधारे हैं, दरवाजा खोलिएं । मगर फकीर के लिए क्या गरीब क्या अमीर, सब बराबर हैं।
जिसके हृदय से परिग्रहवत्ति हटी नहीं है, लोभ-लालच गया नहीं है, जो आशा का दास है और पैसे को बड़ी चीज समझता है, वह धनवान के सामने .