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आध्यात्मिक आलोक
425 श्रीमन्तों-राजाओं, महाराजाओं, सामन्तों आदि का मनोरंजन करने के लिए कविगण कामवासनावर्द्धक काव्य लिखा करते थे । आज भी आत्मतत्त्व की बातों से राजी करने की क्षमता न होने से अपने श्रीमन्त स्वामियों को प्रसन्न करने के उद्देश्य से इंग्लेण्ड, अमेरिका, एशिया आदि देशों की महिलाओं का वर्णन तथा अन्य श्रृंगारिक वर्णन किया जाता है । ठकुरसुहाती करते हुए कहते हैं आपके अन्तःपुर के समान अन्तःपुर अन्यत्र कहीं नहीं देखा, आपके वैभव की सदृशता कोई नहीं कर सकता । इत्यादि बातें कह कर लोगों को प्रसन्न करते हैं।
ऐसी कन्दर्प कथाओं या काम की वृद्धि करने वाली कथाओं या हास्य कथाओं में कुछ नमक-मिर्च लगाकर गढ़ना पड़ता है । और जब ऐसी बातों को अभिनय के साथ कहा जाता है तो वृद्ध एवं उदास व्यक्ति भी एक बार खिलखिला उठते हैं।
प्रश्न उठता है-प्रसन्न करने से लाभ क्या हुआ ? श्रृंगार भाव या कामवासना को जागृत करने के लिए झूठ बोलने से कौनसा कार्य सिद्ध हुआ? केवल थोड़ी देर का विकृत विनोद हुआ और लाभ कुछ भी नहीं मिला । ऐसी स्थिति में इस प्रकार की निरर्थक चेष्टाओं द्वारा आत्मा को कलुषित करने की क्या आवश्यकता
आधुनिक युग में चित्रपटों का अत्यधिक प्रचार हो रहा है। मगर अधिकांश चित्रपट गंदी और अश्लील बातों एवं चेष्टाओं से परिपूर्ण होते हैं। इन चित्रपटों को • देखते-देखते लोगों का मानस बहुत ही विकृत हो गया है। आज समाज में जितनी
बुराइयां आई हैं उनमें से अधिकांश के लिए ये चित्रपट उत्तरदायी हैं । कोमलवय बालकों और नवयुवकों के समक्ष जब निर्लज्जतापूर्ण, अश्लील, मर्यादा को नष्ट करने वाले, वासनादिवर्द्धक घृणाजनक चित्र उपस्थित किये जाते हैं तब कैसे आशा की जा सकती है कि आगे चल कर वे ससंस्कारी, मर्यादा में चलने वाले सच्चरित्र ब्रह्मचारी बन सकेंगे ? ये चित्रपट दर्शकों के जीवन में नेत्रों की राह से जो हलाहल विष घोल देते हैं, उससे उनका समग्र जीवन विषाक्त बन जाता है । नादान बालक भी आज गली-गली में प्रेम के गाने गाते फिरते हैं, यह इन चित्रपटों की ही देन है।
जनता का अधिक भाग अशिक्षित और असंस्कृत होने से निम्नकोटि के अभिनय और संगीत में रुचि प्रदर्शित करता है। वह निर्लज्जतापूर्ण नग्न या अर्धनग्न चित्रों को देख कर खुश होता है । इसी कारण धन के लालची, चित्रपट निर्माता ऐसे चित्रपट बनवाते हैं और पैसे कमाते हैं । इससे समाज में कितनी बुराइयां फैल रही है, इसकी उन्हें चिन्ता नहीं. उन्हें अपनी तिजोरियां भरने की चिन्ता है। आश्चर्य