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आध्यात्मिक आलोक पशुओं को पुरुषत्वहीन करने या नाथने के काम में कठोरता से दमन करना पड़ता है। क्योकि यदि पशु पुरुषत्वहीन न किया जाय तो वह निरंकुश रहता है और मतवाला-सा होकर जल्दी से काबू में नहीं आता । फिर भी श्रावक ऐसा धंधा करे और इसे अपनी आजीविका का साधन बनावे, यह किसी प्रकार भी योग्य नहीं है।
देश के दुर्भाग्य से आज ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि मनुष्यों को भी निलछित किया जा रहा है, सन्ततिप्रजनन के अयोग्य बनाया जा रहा है। पुरुष की नस का ऑपरेशन किया जाता है और स्त्री के गर्भाशय की थैली निकाल ली जाती है । इसी प्रकार के अन्यान्य उपाय भी किये जा रहे हैं । सन्ततिनिग्रह और परिवार नियोजन के नाम से सरकार इस सम्बन्ध में प्रबल आन्दोलन कर रही है और कैम्पों
आदि का आयोजन कर रही है । यह सब बढ़ती हुई जनसंख्या को रोकने के लिए किया जा रहा है । गांधीजी के सामने जब यह समस्या उपस्थित हुई तो उन्होंने कृत्रिम उपायों को अपनाने का विरोध किया था और संयम के पालन पर जोर दिया था । उनकी दूरगामी दृष्टि ने समझ लिया था कि कृत्रिम उपायों से भले ही तात्कालिक लाभ कुछ हो जाय परन्तु भविष्य में इसके परिणाम अत्यन्त विनाशकारी होगे । इससे दुराचार एवं असंयम को बढ़ावा मिलेगा । सदाचार की भावना एवं संयम रखने की वृत्ति समाप्त हो जाएगी।
कितने दुःख की बात है कि जिस देश में भ्रूणहत्या या गर्भपात को घोर-तम पाप माना जाता था, उसी देश में आज गर्भपात को वैध रूप देने के प्रयत्न हो रहे हैं। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि अहिंसा की हिमायत करता हुआ भी यह देश किस प्रकार घोर हिंसा की ओर बढ़ता जा रहा है ? देश की संस्कृति और सभ्यता का निर्दयता के साथ हनन करना जघन्य अपराध है।
यदि कृत्रिम उपायों से गर्भ निरोध न किया जाय तो गर्भ के पश्चात् विवशता या अनिच्छा से ही सही, संयम का पालन करना पड़ता, परन्तु गर्भाधान न होने की हालत में इस संयम पालन की आवश्यकता ही कौन समझेगा ? धार्मिक दृष्टि से ऐसा करने में निज गुणों की हिंसा है । शारीरिक दृष्टि से होने वाली अनेक हानियां प्रत्यक्ष हैं । अतएव किसी भी विवेकवान व्यक्ति को ऐसा करना उचित नहीं। निलंछन कर्म १२ वां कर्मादान है।
(१३) दवम्गिदावणिया-जंगल में चरागाह में अथवा खेत में आग लगा देना दवाग्निदापन नामक कर्मादान है । जिसके यहां पशुओं की संख्या अधिक होती है उसे लम्बा-चौड़ा चरागाह भी रखना पड़ता है । घास बढ़ने पर एवं उसे काट न सकने पर जला डालने की आवश्यकता पड़ती है । घास आदि के लिए जंगलों में