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आध्यात्मिक आलोक
करने की आवश्यकता होगी तो वह बेधड़क करेगा । यह कोरी कल्पना या सम्भावना नहीं, वास्तविक सत्य है । जब-तब समाचार-पत्रों से विदित होता है कि थोड़े से पैसों के लिए अमुक व्यक्ति की हत्या कर दी गई । आज इस देश के एक भाग में डकैतियों का जो दौर चल रहा है, यह क्या है ? भौतिक दृष्टि की प्रधानता का ही यह फल है । अभिप्राय यह है कि जिस की दृष्टि अध्यात्म की ओर आकर्षित नहीं हुई वह अपनी निरंकुश आवश्यकताओं की पूर्ति को ही महत्त्व देगा।
मगर अध्यात्मवादी का दृष्टिकोण इससे एकदम विपरीत होता है प्रथम तो उसका जीवन इतना सरल सादा और संयमपूर्ण होता है कि उसकी जीवन यापन की आवश्यकताएं अत्यन्त कम हो जाती हैं और जो भी आवश्यकताएं होती हैं उनको पुर्ति या तो आरंभ के बिना ही हो जाती है या अत्यल्प आरम्भ से । वह भलकर भी महारम्भ की प्रवृत्ति नहीं करता । वह अपने स्वार्थ साधन के लिए किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुँचाता, बल्कि किसी को कष्ट में देखता है तो उसे कष्ट मुक्त करने का भरसक प्रयास करता है । उसकी इस उदार वृत्ति का लाभ उसे तो प्राप्त होता ही है, समाज को भी महान लाभ होता है । वह समाज के समक्ष एक स्पृहणीय आदर्श उपस्थित करता है और आस पास वालों के जीवन को भी संयम की और मोड़ देता है।
उस मनुष्य का ज्ञान और सम्यक्त्व, किस काम का जिससे स्वयं का और समाज का पाप न घटा ? ज्ञान भले ही अल्प हो मगर सार्थक वही है जिससे पाप घटे और संयमवृत्ति का पोषण हो । कोट्याधीश आनन्द श्रमणोपासक इसीलिए अपने को महा-कर्म बन्य के पन्द्रह कारणों से निवृत्त कर रहा है।
निलाछन कर्म और दवाग्निदावणया कर्म का विवरण पिछले दिनों किया जा चुका है । दावानल लगाने से भले ही समय और धन की बचत हो जाय किन्तु यह फर्म महा हिंसा का कारण है । परिग्रह को बूढ़े के हाथ की लाठी समझने वाला उसके अधिक चक्कर में नहीं पड़ेगा । सम्यग्दर्शन सम्पन्न व्यक्ति परिग्रह को बूढ़े की लाठी समझता है । वह उसे सहारा मात्र मानता है । अतः परिग्रह की वृद्धि के लिए महारंभ करके अपनी आत्मा को पतित करना स्वीकार नहीं करेगा । भगवती सूत्र में आग लगाने वाले और बुझाने वाले के लिए क्रिया का विचार चला तो कहा गया
जंगल में चलते चलते कोई दुर्मति आग लगा दे और दूसरा कोई उसे ड्झावे तो आग लगाने वाला महारंभी और बुझाने वाला अल्पारंभी समझा जाना चाहिये ।
(१४) सरदह तलाय सोसणया कम्मे-जिस भूमि में जल हो उसमें कचरा मिट्टो आदि डालकर कई लोग उसे सुखा देते हैं । वह भूमि अधिक उपजाऊ है,.