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आध्यात्मिक आलोक भद्रबाहु स्वामी अपने काल के महान सन्त थे, सन्तों में शिरोमणि थे । द्वादशांगी के ज्ञाता थे । फिर भी संघ के आदेश को उन्होंने टाला नहीं, क्योंकि संघ की सत्ता सर्वोपरि होती है । कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, वह संघ से बड़ा नहीं होता । उसे संघ के आदेश का अनुसरण करना ही चाहिए । आखिर महान होने पर भी वह संघ का ही एक अंग है । संघ से पृथक् व्यक्ति । का क्या गौरव है ? इसीलिए शास्त्रों में संघ को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है, उसे भगवान् कहा गया है । आपको विदित होगा कि नन्दीसूत्र में सामान्य तीर्थंकरों की और भगवान् महावीर की स्तुति में जहां एक-एक गाथा लिखी गई है; वहां संघ की स्तुति में अनेक गाथाएं दी गई हैं और शास्त्रकार ने असाधारण भक्तिपूर्वक संघ की वन्दना की है । इससे जाना जा सकता है कि हमारे पुरातन महापुरुष संघ को कितना उच्च स्थान प्रदान करते थे । संघ को धर्म के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान मिलना सर्वथा समुचित है, क्योंकि तीर्थकर भगवान के शासन का वह आधार है। उसी में धर्म का व्यवहार्य रूप दृष्टिगोचर होता है । संघ धर्म का प्रवर्तक और संचालक है । यही कारण है कि धर्म की प्रवृत्ति के लिए तीर्थकर भगवान् संघ की स्थापना करते हैं। संघ की सुरक्षा में धर्म की सुरक्षा और संघ की प्रतिष्ठा में धर्म की प्रतिष्ठा है।।
ज्ञान, दर्शन, चारित्रादि गुणों के धारक, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका समूह को संघ कहते हैं । संख्या में छोटा हो या बड़ा, गुणों के कारण संघ बड़ा महनीय है। संघ का संगठन सुदृढ़ होता है तो संयम का पालन समीचीन रूप से होता है । संघ में भेद उत्पन्न होता है तो शासन का तेज मन्द हो जाता है और उसकी शक्ति । कम हो जाती है। इसी कारण संघ में भेद उत्पन्न करना बड़े से बड़ा पाप माना गया है । “संघे शक्तिः कलौ युगे यह उक्ति प्रसिद्ध है जिसका आशय यह है कि विशेषतः कलियुग में संघ में ही शक्ति निहित होती है।
भद्रबाहु स्वामी संघ की महिमा से सुपरिचित थे । अतएव उन्होंने संघ को उचित आदर प्रदान किया ।
मुनि युगल ने लौट कर संघ को भद्रबाहु का कथन सुनाया । श्रुतसभा उपस्थित थी । श्रुतज्ञान के अमरदीप को प्रज्वलित करने और प्रज्वलित रखने के लिए सन्त जन उद्यत थे।
__ अमरदीप हमारे हृदय में विद्यमान है । उसकी ज्योति को बढ़ाने की आवश्यकता है। वह अमरदीप श्रुतज्ञान का प्रदीप है जो केवल ज्ञान के भास्कर को । उदित कर सकता है । यदि श्रुतज्ञान का दीपक न हो तो केवल ज्ञान का भास्कर किस प्रकार उदित हो सकता है ?