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आध्यात्मिक आलोक __ खोजा को तत्त्व मिला कि किसी प्राणी को न सताना, किसी पर हुकुमत मत करना । यही धर्म का तत्त्व महावीर स्वामी ने भी बतलाया है । यह धर्मतत्व सदा काल था, है और रहेगा | इस तत्त्व को शास्त्र के माध्यम से ही समझाया जाता है । मनुष्य भाषा के माध्यम से ही अपने हृद्गत विचार दूसरों तक पहुँचाता है । महर्षियों के अनुभव जनित विचार एवं भाव, साहित्य-श्रुत के माध्यम से ही युगों-युगों से चले आ रहे हैं । अतएव महर्षियों के महत्व के समान श्रुत का भी महत्त्व है।
आचार्य संभूतिविजय ने श्रुत की रक्षा का संकल्प किया और अनेक श्रुतधर मुनियों के सहयोग से श्रुत का संकलन किया । फलस्वरूप ग्यारह अंग व्यवस्थित हो गए । जब दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग का प्रश्न उपस्थित हुआ तो महामुनि भद्रबाहु की ओर ध्यान आकर्षित हुआ । निश्चय किया गया कि श्री संघ की ओर से. आचार्य भद्रबाहु को बुलाना चाहिये ताकि अपूर्ण कार्य पूर्ण हो सके। .
____ भद्रबाहु स्वामी उस समय नेपाल में थे । चरण विहारी होते हुए भी जैन साधु बहुत दूर-दूर तक भ्रमण किया करते हैं । उसका परिभ्रमण अन्य अटन प्रिय लोगों के समान नहीं होता । दूसरे कई लोग साईकिल से भी विदेश यात्रा करते हैं। पर साधु की यात्रा निराली होती है । वे सम्बल के रूप में आटा मेवा या अन्य कोई वस्तु नहीं रखते । न कोई गाड़ी आदि साथ रखते, सन्निधि अर्थात् दूसरे दिन के लिए कोई भी भोजन-सामग्री रखना तो उनके लिए बहुत बड़ा दोष है । संग्रह करना गृहस्थों का काम है । साधु कल की चिन्ता नहीं करता । वह पक्षी के समान सर्वथा परिग्रह हीन होता है। वासी बचे न कुत्ता खाय, की कहावत साधु-जीवन में पूरी तरह चरितार्थ होती है।
आज विनिमय के साधनों की सुविधा होने से संग्रह करने की वृत्ति अधिक बढ़ गई है। धनवान या जमींदार व्यापारी स्टॉक पास रख करके अकाल न होने पर भी अकाल की सी स्थिति उत्पन्न कर देते हैं । खाद्य पदार्थों का संग्रह करके जब. दबा लिया जाता है तब लोगों को वे दुर्लभ हो जाते हैं और उनका भाव ऊंचा चढ़ जाता है । इसी उद्देश्य से व्यापारी संग्रह करता है और मुनाफा कमाता है । ऐसा करने से आज खाद्य समस्या बड़ी गम्भीर हो गई है और बहुत असन्तोष फैल .. रहा है । सरकार की ओर से इस संग्रहवृत्ति पर अंकुश लगाया जाता है, फिर भी . वह रुक नहीं रही । अच्छे आदर्श व्यापारी को ऐसा नहीं करना चाहिये । अनुचित मुनाफा कमाना श्रावक को शोभा नहीं देता । यह व्यापार नीति के प्रतिकूल है । व्यापारी को अपने लाभ के साथ जनता की लाभ-हानि, सुविधा असुविधा का भी विचार रखना चाहिये।