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[६७] कर्मादान-अमंगल कर्म
श्रमण भगवान् महावीर ने नानाविध सन्तापों से संतप्त संसारी जीवों के कल्याण के लिए, मोक्ष मार्ग का उपदेश दिया । वह मोक्ष मार्ग अनेक प्रकार से प्रतिपादित किया गया है। ज्ञान और क्रिया रूप से द्विविध मोक्ष मार्ग है, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र ऐसे तीन और सम्यग्दर्शन आदि तीन के साथ तप यों चार प्रकार से मोक्षमार्ग हैं । इस प्रकार शब्द और विवक्षा में भेद होने पर भी मूल तत्त्व में कोई भेद नहीं है, विसंगति नहीं है।
ज्ञान और दर्शन में अभेद की विवक्षा करके 'ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः' कहा जाता है । भेद विवक्षा करके 'सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्ग : ऐसा कहा जाता है । यहां तप को चारित्र के अन्तर्गत कर लिया गया है । तप निर्जरा का प्रधान कारण है, अतएव उसका महत्त्व प्रदर्शित करने के लिए जब पृथक् निर्देश किया जाता है तो शास्त्रकार कहते हैं
नाणं च दसणं चैव चरितं च तवो तहा। . .
एस मग्गोत्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदसिहिं ।। अर्थात् सर्वज्ञ सर्वदर्शी जिनेन्द्र भगवान् ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को मोक्ष का मार्ग कहा है।
__ मोक्षमार्ग का निरूपण चाहे भेद विवक्षा से किया जाय, चाहे अभेद विवक्षा से, एक बात सुनिश्चित है और वह यह है कि सर्वप्रथम सम्यग्दर्शनं प्राप्त होना चाहिये। जिसने सम्यग्दर्शन पा लिया, समझना चाहिये कि उसने अपने जीवन में आध्यात्मिकता की नींव मजबूत करली । उसमें आत्मा पर से कमों का पर्दा हटा देने की शक्ति आ गई । उसकी भूमिका सुदृढ़ हो गई है ।