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आध्यात्मिक आलोक
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रलकंबल पाकर लुटेरे अत्यन्त प्रसन्न हुए और मुनि के मन पर विषाद की गहरी रेखा खिंच गई । एक की प्रसन्नता दूसरे की अप्रसन्नता का कारण बनती है और दूसरे की अप्रसन्नता से किसी को प्रसन्नता प्राप्त होती है । धिक्कार है इस संसार को, धिक्कार है मनुष्य की मुढ़ता को, जिसने तत्व पा लिया है, मर्म को समझ लिया है, वह ऐसी बालचेष्टा नहीं करता । वह आत्मिक वैभव की वृद्धि में ही अपना कल्याण मानता है और इहलोक-परलोक सम्बन्धी कल्याण का भागी बनता है।