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आध्यात्मिक आलोक एवं गांव के लोगों द्वारा हाथ से बनाने हेतु सुरक्षित एवं संरक्षित घोषित कर दिये जाय। इससे देशवासियों का स्वास्थ्य भी बिगड़ने से बचेगा और गांव टूट कर शहरों की ओर नहीं भागेगे । इससे शहर भी प्रदूषण से मुक्त रहेंगे। इससे ऐसे अनेक लाभ हैं। हमारे पूर्वजों ने एक परम वैज्ञानिक ग्राम्यजीवन-पद्धति की जो नींव डाली थी उससे समस्त देशवासी सुखी एवं सम्पन्न थे । तनाव-मुक्त थे । विदेशी विचारों से प्रभावित होकर जब से हमने इस ग्राम्य-जीवन-पद्धति को तोड़ना प्रारम्भ किया तब से देशवासियों के दुखों की सीमा नहीं रही । यह एक सुविचारित हजारों वर्षों की अनुभूत वैज्ञानिक ग्राम्य जीवन पद्धति को तोड़ने का कुफल है ।
जिन देशों में जनसंख्या कम है और कार्य करने के लिए मजदूर दुर्लभ हैं, वहां यन्त्रों का प्रयोग किया जाना समझ में आने योग्य है, किन्तु भारत जैसे जनसंख्या बहुल देश में छोटे-छोटे कामों के लिए, जैसे आटा पीसने, दालें बनाने, धान कूटने, गुड़, शक्कर बनाने, तेल, घी आदि के लिए भी यन्त्रों का उपयोग करना अत्यन्त अनुचित है । यह गरीबों के काम को समाप्त करने के समान है । उनकी रोजी-रोटी छीनकर उन्हें बेकार बनाना है।
पहले महिलाएं हाथ से आटा पीसती थीं, 'स्वयं पानी लाती थीं और धान आदि कूटती थीं तो शरीरिक श्रम हो जाता था और उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता था। आज ये सब काम मशीनों को सौंप दिये गये हैं । इनके बदले उनके पास अन्य कोई कार्य नहीं रह गया है । अतएव घरों में अधिकांश महिलाएं प्रमाद में जीवन व्यतीत करती हैं । जब सामने कोई काम नहीं होता तो अड़ौसी-पड़ौसी लोगों की निन्दा और विकथा में उनका समय व्यतीत होता है । इस प्रकार स्वास्थ्य, धर्म और धन सभी की हानि हो रही है।
आम तौर पर देखा जाता है कि यन्त्रों से जो खाद्य पदार्थ तैयार होते हैं, उनका सत्व नष्ट हो जाता है । पदार्थो के पोषक तत्त्व को यन्त्र चूस लेते हैं। परिणामस्वरूप जनता का शारीरिक सामर्थ्य घटता जाता है, रोगों के आक्रमण का प्रतिरोध करने की शक्ति क्षीण होती जाती है। परिणाम यह होता है कि मदिरा, अंडे के रस तथा मछलियों के सत्व आदि से निर्मित दवाइयों का प्रचलन बढ़ता जाता है। लोग प्रत्यक्ष हिंसा को तो देख भी लेते हैं मगर परोक्ष हिंसा की इस लम्बी परम्परा को जो इन यन्त्रों के प्रयोग से होती है, बहुत ही कम सोच पाते हैं।
धार्मिक दृष्टि से स्वयं यन्त्र चलाने वाला कृतपाप का भागी होता है । साझीदार समर्थन से पाप कराने के अधिकारी होते हैं और यन्त्र से तैयार होने वाले पदार्थों का उपयोग करने वाले अनुमोदना का पाप उपार्जन करते हैं । इन्हों सब