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आध्यात्मिक आलोक करने के लिए उसे ले लिया और दयापूर्वक उसका पालन किया । वे अत्यन्त दयाल थे । श्रावक के हृदय में ऐसी दयालुता होनी चाहिये । जिसके अन्तःकरण में दया होती है वह अन्य व्रतों को भी निभा सकता है।
(११) जंतपीलण कम्मे ( यन्त्रपीड़न कर्म)-यन्त्र के द्वारा किसी सजीव वस्तु को पीलना यन्त्रपीड़न कर्म नामक कर्मादान है । घानी, चरखी, कोल्हु, चक्की आदि यन्त्र प्राचीन काल से इस देश में प्रचलित हैं । गनों को और तिल्ली, अलसी आदि के दानों को कोल्हू आदि में पीला जाता था, इस समय भी पीला जाता है। मगर इस युग में एक से एक बढ़कर दैत्याकार यन्त्रों का निर्माण हो चुका है, जिनमें मनों
और टनों तिल आदि बात की बात में पीले जा सकते हैं । बोरे के बोरे तिल आदि यन्त्रों में उण्डेल दिये जाते हैं और उनका कचूमर निकाल दिया जाता है।
आटे की चक्की चलाना शायद यन्त्रपीड़न कर्म न समझा जाता हो, मगर गम्भीरता से सोचने की बात है कि उससे कितनी हानि हो रही है, कितना पाप हो रहा है। जिन ग्रामों में अभी तक चक्की नहीं पहुंच पाई, वहां चक्की लगाने को लोग उत्सुक रहते हैं । चक्की लगने से तन को आराम, समय की बचत और पैसे की बचत समझी जाती है। किन्तु यह सब प्रतीत होने वाले लाभ ऊपरी दृष्टि से ' लाभ प्रतीत होते हैं । महात्मा गांधीजी बड़ी-बड़ी मशीनों के उपयोग के विरोधी थे ! उनकी दृष्टि गहरी थी। वे दीर्घ दृष्टि से सोच-विचार करते थे । हमें भी गहराई से सोचना चाहिये । धार्मिक दृष्टि से इन यन्त्रों का प्रयोग करने से, घोर अयतना और इस कारण हिंसा होती है । इसके अतिरिक्त अन्य व्यावहारिक दृष्टियों से भी यन्त्रों का प्रयोग हानिकारक है। ये भीमकाय यन्त्र हजारों मनुष्यों द्वारा हाथों से किये जाने वाले कार्य को चटपट निपटा देते हैं । परिणाम यह होता है कि मनुष्यों में बेकारी फैलती है । उनकी आजीविका नष्ट हो जाती है । इस प्रकार मनुष्य बेकार होकर दुःखी जीवनयापन कर रहे हैं । इन यन्त्रों की बदौलत ही हजारों, लाखों मनुष्यों की आय गिनेचुने धनवानों की तिजोरियों में एकत्र होती है, जिससे आर्थिक विषमता बढ़ रही है और उस विषमता के कारण वर्ग संघर्ष हो रहा है । इसी विषमता की खाई को पाटने के लिए साम्यवाद और समाजवाद जैसे आन्दोलन चल रहे हैं । यह सबसे बड़ा विषम चक्र है । एक ओर यन्त्रों का अधिक से अधिक प्रयोग करने की नीति को अपनाना और दूसरी ओर आर्थिक समता को स्थापित करने के मार्ग पर चलना परस्पर विरोधी नीतियां हैं । पर इसका विचार किसको है ? कम से कम इतना तो किया ही जा सकता है कि देशवासियों की समस्तं प्रकार की खाने योग्य वस्तुएं, जैसे-आटा, दाल, शक्कर तेल आदि, पीने योग्य वस्तुएं, जैसे-शरबत आदि एवं सूती, ऊनी, रेशमी वस्त्रादि में मिलों का उपयोग बन्द कर दिया जाय । वे सभी ग्रामोद्योग