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आध्यात्मिक आलोक
365 प्रवृत्ति होने से मानव की भी ऐसी ही स्थिति हो जाती है । वह भी अपने पतन में आनन्द मानता है।
पाटलीपुत्र में मुनि की प्रतीक्षा की जा रही थी। जब वे नगर में पहुँचे तो रूपकोषा ने प्रश्न किया-"रत्नकम्बल कहां है ?"
मुनि ने बांस की लाठी में से रत्नकंबल निकाला जैसे म्यान में से तलवार निकाली जाती है।
रूपकोषा ने मन ही मन विचार किया-"मुनि है शूरवीर, सिर्फ मोड़ की आवश्यकता है । जिस मनुष्य में अपने ध्येय को पूर्ण करने की लगन होती है, साहस होता है, उसका मोड़ बदल देना ही पर्याप्त है । उसके पीछे लकड़ी लेकर हर समय चलने की आवश्यकता नहीं होती । लगन वाले व्यक्ति को अगर अच्छे मार्ग पर लगा दिया जाए तो वह अवश्य ही सराहनीय सफलता प्राप्त कर लेता है । इसके विपरीत जिसमें लगन का सर्वथा अभाव है, जो कर्तृत्वशक्ति से हीन हो वह साधना के मार्ग को पार नहीं कर सकता। उसे किसी भी महान कार्य में सफलता नहीं मिलती।"
धर्ममार्ग, अध्यात्ममार्ग या साधनामार्ग में अकर्मण्य व्यक्ति आ जाय तो क्या करेगा ? पकड़ मजबूत हो और चलन अच्छा हो तो मनुष्य सब कुछ कर सकता है।
तथ्य यह है कि प्रत्येक मनुष्य में शक्ति का अक्षय भंडार भरा है और वह शक्ति छलक-छलक कर बाहर आकर प्रकट होती है। किन्तु मनुष्य के जैसे संस्कार होते हैं, जैसे विचार होते हैं, उसी प्रकार के कार्यों में वह शक्ति लगती है। कुसंस्कारी
और मलिन विचारों वाले मनुष्य की शक्ति गलत कामों में खर्च होती है। वही व्यक्ति जब सन्मार्ग पर आ जाता है, उसके विचार विशुद्ध हो जाते हैं तो सही काम में उसकी शक्ति का सदुपयोग होने लगता है। भगवान महावीर ने फर्माया है
जे कम्मे सुरा,
ते धम्मे सूरा। जो कर्म करने में शुरवीर होते हैं, वे धर्म करने में भी शूरवीर होते हैं।
जिसमें साहस नहीं, पुरुषार्थ नहीं, लगन और स्फूर्ति नहीं और संकटों से जूझ कर, आग से खेल कर, प्राणों को हथेली में लेकर अपने अभीष्ट को प्राप्त करने की क्षमता नहीं, जो बुझा हआ है, वह किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त नहीं कर सकता । जिस तलवार की धार तीखी है वह अपना काम करेगी ही, चाहे उससे आत्मवध किया जाय अथवा आत्मरक्षा की जाय । इसी प्रकार जो पुरुष