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आध्यात्मिक आलोक जीवों के साथ त्रस जीवों का भी प्रचुरता के साथ घात होता है । कुआँ, खदान आदि खोदने में अनेकानेक जन्तुओं का विघात हो जाता है । हल, कुदाल आदि से साधारण जन्तु यों ही धक्का लगने से मर जाते हैं । कभी-कभी बड़े जीव भी चपेट में आ जाते हैं । अतएव भूमि को फोड़ने का धंधा करना श्रावकोचित कार्य : नहीं है। वह व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से अप्रशस्त माना जाता है।
कुछ आचार्यों ने स्फोट कर्म की व्याख्या करते हुए बारीक कदम उठाया है और चना आदि से दाल बनाना भी इसमें शामिल कर दिया है । इस व्यवस्था के अनुसार इसका क्षेत्र व्यापक हो जाता है। किन्तु स्मरण रखना चाहिए कि कर्मादानों के त्याग का सम्बन्ध गृहस्थ श्रावकों के साथ है । इसके अतिरिक्त कर्मादान वही होता है जिसमें महान् आरंभ होता हो । अगर दाल बनाना भी कर्मादान में परिगणित कर लिया जाय तो इसी कोटि के अन्यान्य कार्यों को भी कर्मादान गिनना होगा और ऐसी स्थिति में गृहस्थी के अनेक अनिवार्य दैनिक कार्य भी महारंभी-कर्मादान मान्य करने पड़ेगे । व्रत न पालन करने का एक कारण भय की भावना है | लोग व्रतों को अंगीकार करने से डरते हैं । सोचते हैं न जाने इस व्रत का पालन हो सकेगा या नहीं ? व्रत धारण न करने की अवस्था में मनुष्य उन्मुक्त रहता है, व्रत ग्रहण करते ही बन्धन में आना पड़ता है । इसी भय से कई लोग व्रत अंगीकार करने से बचना चाहते हैं । ऐसी स्थिति में गृहस्थी के सामान्य कार्यों को भी अगर श्रावक के लिए कर्मादान कह कर त्याज्य ठहरा दिया जाय तो ठीक नहीं होगा । शास्त्र में वर्णन आता है कि सकडाल पुत्र के ५०० बरतनों की दुकाने थी वह कुम्हार का काम करते हुए भी श्रावक था । ढंक नामक एक प्रजापति (कुम्हार ) भी अच्छा श्रावक हो गया है, जिसने सुदर्शना साध्वी की श्रद्धा शुद्ध की । वह मिट्टी के बरतनों की दुकान करता था और उन्हें पकाता भी था ।
सुदर्शना एक प्रमुख साध्वी थी । जब जमालि सिद्धान्त विरुद्ध प्ररूपण और श्रद्धा के कारण भगवान् महावीर के साधुसंघ से पृथक् होने लगे तो सुदर्शना ने भी जमालि का अनुसरण किया । उनका कथन यह था कि कोई भी कार्य जब तक "किया जा रहा है तब तक उसे किया नहीं कहा जा सकता । जब कार्य किया जा चुके तभी उसे 'किया' कहना चाहिए । 'क्रियमाण' को 'कृत' कहना मिथ्या है ।
__ भगवान् महावीर के मतानुसार क्रियमाण कार्य को भी कदाचित् कृत कहा जा सकता है । बात यह है कि हम स्थूल दृष्टि से जिसे एक कार्य कहते हैं, वास्तव में वह अनेकानेक छोटे-छोटे कार्यों का समूह होता है । उदाहरणार्थ जुलाहा वस्त्र बनाता है तो हम वस्त्र बनाने को एक कार्य समझते हैं, परन्तु वह एक ही कार्य नहीं