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[६५] मादक वस्तु व्यापार
श्रुति मुक्ति के प्रमुख अंगों में से एक है । मनुष्य का जीवन प्राप्त हो जाने पर भी यदि ज्ञानी महापुरुषों की अनुभवपूत वाणी को श्रवण करने का अवसर न मिले तो वह निरर्थक हो जाता है । जिन महापुरुषों ने दीर्घकाल पर्यन्त एकान्त शान्त जीवनयापन करते हुए तत्व का चिन्तन मनन किया है, उनकी वाणी के श्रवण का लाभ जीवन के महान लाभों में से एक है।
प्रश्न हो सकता है कि वह श्रुति कौन-सी है जो मुक्ति का अंग है ? धर्म और साधना के नाम पर प्रतिदिन हजारों बातें सुनते आ रहे हैं । मुक्ति एक है और उसके उपदेशक. अनेक हैं। उनके उपदेशों में भी समानता नहीं है। ऐसी स्थिति में किसका उपदेश सुना जाये ? किसे मान्य किया जाये ? क्या साधना के नाम पर सुनी जाने वाली सभी बातें श्रुति हैं ?
कर्णगोचर होने वाले सभी शब्द श्रुति नहीं हैं। कानों वाले सभी प्राणी सुनते हैं। सुनने के अनन्तर श्रुत शब्द लम्बे समय तक दिमाग में चक्कर खाता रहता है। श्रोता उसके अभिप्राय को अवधारण करता है। किन्तु यदि श्रोता संज्ञावान न हो तो उसका श्रवण व्यर्थ जाता है । कई प्राणी ऐसे भी हैं जो श्रोत्र इन्द्रिय से युक्त होते हैं किन्तु अमनस्क होते हैं। उनमें मन नामक करण नहीं होता जिसके आश्रय से विशिष्ट चिन्तन-मनन किया जाता है। वे शब्दों को सुनकर भी लाभ नहीं उठा सकते। कुछ प्राणी ऐसे हैं जो श्रोत्रेन्द्रिय और मन दोनों से सम्पन्न होते हैं किन्तु उनका मन विशेष रूप से पुष्ट नहीं होता। उन्हें भी श्रवण का पूरा लाभ नहीं होता। पुष्ट मन वालों में भी कोई-कोई मलीन या मिथ्यात्वग्रस्त मन वाले होते हैं । वे शब्दों को सुनते हैं, समझते हैं और उन पर मनन भी करते हैं। परन्तु उनकी मनन धारा का प्रवाह विपरीत दिशा में बहता है, अतएव वे कल्याणकर विचार न करके अकल्याणकारी विचारों को ही स्थान देते हैं। उनको भी श्रुति का यथार्थ लाभ नहीं मिलता।