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आध्यात्मिक आलोक
373 मुनाफाखोरी के उन्मूलन के लिए अनगिनत कानुन बनाये जा रहे हैं और अध्यादेश पर अध्यादेश जारी किये जा रहे हैं। मगर ऐसा करने का परिणाम क्या आ रहा है? कानूनों की वृद्धि के साथ अप्रामाणिकता की वृद्धि हो रही है, भ्रष्टाचार बढ़ता जाता है, लोग कानून से बचने के लिए बेईमानी का नया तरीका खोज लेते हैं। ऊपर से कोई चीज लादने का इसके अतिरिक्त और कोई दूसरा फल निकल भी नहीं सकता।
भगवान महावीर ने मानव-मन की गहराई की थाह ली थी। उनकी दूरदर्शिता असाधारण थी । ढाई हजार वर्ष पूर्व सामाजिक और वैयक्तिक जीवन के उत्थान की जो विधि उन्होंने बतलाई थी, वही आज भी उपयोगी हो सकती है और कहना तो यह चाहिए कि उसके अतिरिक्त दूसरी कोई विधि संभव नहीं हो सकती । उनके द्वारा जिन नैतिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है, वे चिर पुरातन होने पर भी सदा नूतन रहेगे । वे देश और काल की परिधि में बधे हुए नहीं हैं । शाश्वत सत्य के रूप में वे आज भी हमारे लिए प्रेरणा के प्रबल स्रोत हैं ।
हिंसा और असत्य आदि के निवारण के लिए भगवान महावीर ने जहां एक-एक व्रत का विधान किया, वहाँ आर्थिक बुराई से बचने के लिए एक नहीं, तीन व्रतों का प्रतिपादन किया है । परिग्रह परिमाण, भोगौपभोग परिमाण और अनर्थदण्ड त्याग, ये तीन गृहस्थ के व्रत एक-दूसरे के पूरक और सहायक हैं | गृहस्थ को चाहिए कि वह अपनी इच्छाओं के अनन्त प्रसार को रोक दे और उन्हें सीमित कर ले। ऐसा करने के लिए उसे भोग और उपभोग की सामग्री की मर्यादा करनी होगी । इसके बिना इच्छाएं सीमा में नहीं रहेंगी । इन दोनों व्रतों के यथावत् पालन के लिए निरर्थक वस्तुओं के संग्रह से और निरर्थक पापों से बचना भी आवश्यक होगा ।
भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित इन व्रतों का आश्रय लिया जाय तो विश्व की अधिकांश समस्याएं बड़े सुन्दर ढंग से और स्थायी रूप से सुलझ सकती हैं। इस विधान में ऊपर से कोई चीज थोपी नहीं जाती वरन हृदय में परिवर्तन किया जाता है। अतएव यह विधान ठोस और स्थायी है।
भगवान महावीर के तत्त्वज्ञान का प्रधान साध्य समभाव है । समभाव की साधना पर उन्होंने बहुत बल दिया है । इस साधना की विशेषता यह है कि इससे व्यक्तिगत जीवन अत्यन्त उच्च, उदार, शान्त और सात्विक बनता है। साथ ही समाज में समता और शान्ति आती है। व्यक्तियों का समूह ही समाज है और व्यक्तियों के जीवन में जब सुधार हो जाता है तो समाज स्वयं सुधर जाता है ।
जोवन को उन्नत बनाने के लिए दुवृत्तियों पर अंकुश होना आवश्यक है। साथ ही प्रत्येक को दूसरे का जीवन बनाने में निमित्त भूत बनना चाहिए । जीवन में