________________
358
आध्यात्मिक आलोक. . अनुसार मुनि ने इस बार बाँस में कम्बल को फिट कर लिया । बाँस को लाठी. की तरह लेकर उन्होंने जंगली रास्ते को पार किया।
रुपये और नोट कितने आए और चले गए। कमरे में तिजोरी के अन्दर रकम बन्द होने पर भी द्वार पर पहरेदार न हो तो धनी मनुष्य को चिन्ता के कारण निद्रा नहीं आती । अगर तिजोरी में हीरा-मोती हुए तब तो सुरक्षा का जबर्दस्त प्रबन्ध करना पड़ता है, क्योंकि जवाहरात दुर्लभ हैं और इसी कारण विशेष मूल्यवान हैं । कौड़ियों की रक्षा के लिए किसी को विशेष चिन्ता नहीं करनी पड़ती । परन्तु महावीर स्वामी कहते हैं-"मानव ! तनिक विचार तो कर कि ये पौदगलिक रत्न अधिक मूल्यवान हैं अथवा समयाज्ञान-दर्शनचारित्र रूप आत्मिक रत्न अधिक मूल्यवान हैं ? दोनों प्रकार के रत्नों में कौन अधिक दुर्लभ है ? कौन अधिक हितकारी और सुखकारी है ? किनसे आत्मा को निराकुलता और शान्ति प्राप्त होती है ?"
___ पार्थिव रत्नों से क्या मनुष्य सुखी हो सकता है ? वै तो चिन्ता, व्याकुलता, अतप्ति और शोक-सन्ताप के ही कारण होते हैं। उनसे लेश मात्र भी आत्मा का हित नहीं होता । इन भौतिक रत्नों की चकाचौंध से अंधा होकर मनुष्य अपने स्वरूप को देखने और पहचानने में भी असमर्थ बन जाता है। शरीर में जब बाधा उत्पन्न होती है तो हीरा और मोती उसका निवारण नहीं कर सकते । उदर में भीख की ज्वाला जलती है तो उन्हें खा कर तृप्ति प्राप्त नहीं की जा सकती | जब अजेय यम का आक्रमण होता है और शरीर को त्याग कर जाने की तैयारी होती है तब जवाहरात के पहाड़ भी आड़े नहीं आते । मौत को हीरा-मोतियों की घूस देकर प्राणों की रक्षा नहीं की जा सकती । परभव में उन्हें साथ भी नहीं ले जाया जा सकता।
आखिर ये जवाहरात किस मर्ज की दवा हैं। इनकी प्राप्ति होने पर मान आदि कषायों का पोषण अवश्य होता है जिससे आत्मा अधोगति का अधिकारी बनता
सम्यग्दर्शन आदि भावरत्न आत्मा की निज सम्पत्ति हैं । इनसे आत्मा को हित और सुख की प्राप्ति होती है। इनकी अनुपम आभा से आत्मा दैदीप्यमान हो उठता है और उसका समस्त अज्ञानान्धकार सदा के लिए विलीन हो जाता है । ये वे रत्न हैं जो आत्मा को सदा के लिए अजर, अमर, अव्याबाध और तृप्त बना देते हैं । इनके सामने काल की दाल नहीं गलती । रोग को पास आने का योग नहीं मिलता । यह अक्षय सम्पत्ति है । अतीव-अतीव पुण्य के योग से इसकी प्राप्ति होती