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आध्यात्मिक आतोक है । इन आत्मिक रत्नों की तुलना में हीरा, पन्ना, माणिक, नीलम आदि पाषाण के टुकड़ों से अधिक कुछ भी नहीं हैं।
तथ्य यही है फिर भी मूढ धी मनुष्य पत्थर के टुकड़ों को रत्न मान कर उनकी सुरक्षा के लिए रात-दिन व्यग्र रहता है और असली रत्नों की, सम्यग्ज्ञान-दर्शन चारित्र की उपेक्षा करता है । कितनी करुणास्पद स्थिति है, नादान मानव की।
___ आत्मदेव ज्ञान, दर्शन और चारित्र का धन लेकर चला है तो सैकड़ों बार लुटा है, मगर एक बार ठगा कर जो फिर धोखा नहीं खाता वही समझदार व्यक्ति है। भगवान् कहते हैं-"संसार रूप वन में काम, क्रोध आदि लुटेरे तेरे मूल्यवान् धन दर्शन चारित्र को न लूट लें, सचेत रहना । इस रत्नकंबल को संभाल कर रखना ताकि संसार से पार पहुँच सको । ऐसा करने से ही उभय लोक में कल्याण होगा।"