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आध्यात्मिक आलोक बुद्धिमान अपने विचार को औचित्य की तराजू पर तोलता है और तोलतोल कर बोलता है।
संघ का सम्मान गुरुजी का मान और बिना विचारे काम न करना या न बोलना चाहिए इस बात का भान उनको था अतः इन सब कारणों से वै मौन रहे । कड़वे घूट को पी गए।
___अगर ज्ञान का प्रकाश पाकर कषाय का शमन कर लिया जाय तो वह रसायन है । दमन करने से भी उसकी भयंकरता कम हो जाती है । जिसका शमन कर दिया जाता है, वह शीघ्र उठ कर खड़ा नहीं होता किन्तु जिसका दमन किया जाता है वह समय की प्रतीक्षा करता है ।
बन्धुओ ! इस भूमि पर एक से एक बढ़ कर आत्म-विजयी महापुरुष हुए हैं। वे आत्मविजय को ही परम लक्ष्य और चरम विजय मानते थे, क्योंकि आत्मविजय के पश्चात् किसी पर विजय प्राप्त करना शेष नहीं रह जाता | उनकी पावन प्रेरणा प्रदान . करने वाली प्रशस्तियों और कथाओं से हमारा साहित्य परिपूर्ण है । ये प्रशस्तियां और कथाएं युग-युगान्तर तक मानव-जाति की महान् निधि बनी रहेंगी और उसके समक्ष स्पृहणीय आदर्श उपस्थित करती रहेंगी। जो भव्य जीव आत्माभिमुख होगे, वे उनसे लाभ उठाते रहेंगे और अपना कल्याण करेंगे।