________________
आध्यात्मिक आलोक
341
बन्धुओ ! यह साधक की हीयमान स्थिति है । इसे समझ कर हमें अपनी साधना में सजग रहना है । छल-कपट, माया-मोह, फरेब किसी समय भी अपना सिर ऊँचा उठा सकते हैं । यदि असावधान हुए तो नीचे गिरना संभव है । अतएव सावधान होकर ज्ञानवल लेकर चलना है, पाप से डरना है, भगवान से डरना है। यह लक्ष्य कभी मंद न पड़े। यदि पाप से भय है, अधःपतन से भय है तो शास्त्र या धर्म की शिक्षा काम आएगी । पाप का भय हो तो साधक कहीं भी रहे, जीवन निर्मलत्य के मार्ग में अग्रसर ही होता जाएगा और लौकिक तथा पारलौकिक कल्याण होगा।