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आध्यात्मिक आलोक साधक को अपना चिन्तन, स्मरण, भाषण और व्यवहार ऐसा रखना चाहिए जो लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक हो । अर्थ और काम की साधना वहां रुक जाएगी जहां वह धर्म साधना में गतिरोध उत्पन्न करेगी । जैसे-दुर्घटना की आशंका से चालक गाड़ी रोक देता है, उसी प्रकार धर्मसाधना का साधक अर्थ एवं काम की गाड़ी को रोक देगा । श्रावक सदा सजग रहेगा कि काम और अर्थ कहीं धर्म के मार्ग में बाधक तो नहीं हो रहे हैं। उसके लिए धार्मिक साधना का दृष्टिकोण मुख्य है, अर्थ
और काम गौण है । गृहस्थ आनन्द ने इसी कारण अर्थ और काम पर रोक लगा दी थी।
पिछले दिनों अंगारकर्म और वन कर्म पर चर्चा की गई । जब कहीं कोई नवीन नगर बसाना होता है तो उस जगह के समस्त वृक्षों को कटवाना और घास-फूस को जला देना पड़ता है । मगर व्रत की साधना को लेकर चलने वाले साधक के लिए ऐसे धंधे करना उचित नहीं है । वन के बड़े-बड़े वृक्ष जब काटे जाते हैं तो अनेक पशु-पक्षियों के घर-द्वार विनष्ट हो जाते हैं । यदि सहसा वृक्षों की कटाई हो तो पक्षी संभल नहीं पाते । उन पक्षियों का छोटा-मोटा पारिवारिक जीवन होता है। संभलने का अवसर न मिलने से उनके अंडे-बच्चे आदि सर्वनाश के ग्रास बन जाते हैं। कुछ पक्षी तो वृक्षों की कोटरों में ही घर बना कर रहते हैं। जब यकायक वृक्ष कटने लगते हैं तो उनके लिए प्रलय का-सा समय आ जाता है। वे बेहाल हो जाते हैं।
___यह तो वृक्ष काटने की बात हुई किन्तु जहां वृक्ष काट कर कोयला बनाया जाता है वहां के प्राणियों का तो कहना ही क्या । अतएव ऐसे निर्दयता पूर्ण कृत्य खरकर्म माने गए हैं।
(३) साडी कम्मे ( शकट कर्म)- इसका सम्बन्ध वन कर्म से है । गाड़ी आदि बना कर बेचने का धंधा करना शकटकर्म कहलाता है । अथवा गाड़ी चलाना सागडीकर्म है । श्रावक को यह धंधा भी नहीं करना चाहिए । यह भी महाहिंसा से युक्त कर्म है । इसके लिए वनस्पति का विशेष रूप से उच्छेद करना पड़ता है । जो गाड़ी, गाड़ा, रथ आदि बनाता है, वह बैलों और घोड़ों आदि की बाधा का भी कारण बनता है। उनके मारण, छेदन, त्रास और संताप का निमित्त होता है।
गाड़ीवान के सामने दो बातें होती हैं । पशु पर दया और स्वामी की आज्ञा का पालन । परन्तु उसका अधिक लगाव और झुकाव मालिक की आज्ञा की • ओर होता है, क्योंकि मालिक उसे आजीविका देता है । आज्ञा के उल्लंघन से वह
होता है, उलाहना देता है । पशु मुक है । अत्याचार करने पर भी वह