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आध्यात्मिक आलोक
स्नान करते समय जल में मिले हुए वीर्य के पुद्गल स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश कर सकते हैं। पुरुषों के बैठने के स्थान में रहे हुए वीर्य - पुद्गल, यदि स्त्री उसी स्थान में बैठ जाय तो कदाचित् उसके गर्भाशय में जा सकते हैं। इत्यादि परिस्थितियों में पुरुष के संसर्ग के बिना भी गर्भ रह सकता है। पुरुष के संसर्ग से जो गर्भाधान होता है उसमें गर्भ के शरीर में अस्थियों का निर्माण होता है, मगर अन्य कारणों से होने वाले गर्भ में मांसपिण्ड ही बनता है । उसमें अस्थि नहीं होती ।"
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भण्डारीजी इस बात से बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने बादशाह के सामने यह बात रख कर शाहजादी के प्राण बचा लिये । बादशाह को जब पूज्य भूधरजी महाराज का परिचय प्राप्त हुआ तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने पूज्य श्री कें दर्शन कर अहिंसा धर्म का ज्ञान प्राप्त किया ।
एक बार पूज्य भूधरजी महाराज कालू नामक ग्राम में पधारे । यह ग्राम जोधपुर रियासत के अन्तर्गत है । आषाढ़ का महीना था गर्मी तेज गिर रही थी 1 मेघ घिर-घिर कर आते और बिखर जाते थे । किसानों में बड़ी व्यग्रता थी ! बार-बार आशा बंधती और वह निराशा में परिणत हो जाती थी । प्रकृति कृषकों के साथ निष्ठुर क्रीड़ा कर रही थी ।
ऐसे समय में भूधरजी महाराज वहां पहुँचे थे। नदी वहां की सूखी पड़ी थी । तेज धूप पड़ने से नदी की रेत तप जाती थी । भूधर जी महाराज उस रेत में लेट कर आतापना लेते थे । आंखों की सुरक्षा के लिए वे उन पर पट्टी बांध लिया करते थे ।
एक दिन एक किसान उस ओर निकला । यद्यपि मुनि ने उसको कोई हानि नहीं पहुँचाई थी, फिर भी कषाय के वशीभूत होकर उसने उनके मस्तक पर लट्ठ का प्रहार कर दिया ।
भारत में और विशेषतः देहातों में अब भी अनेक प्रकार के अन्धविश्वास प्रचलित हैं । उस जमाने में तो और अधिक प्रचलित थे । संभवतः उस किसान ने सोचा कि यह साधु नदी की रेत में लेट कर वर्षा नहीं होने देता । इसी के कारण बादल आ आ कर चले जाते हैं । इस विचार से उसको क्रोध आना स्वाभाविक
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मस्तक पर प्रहार होते ही रुधिर की धारा प्रवाहित होने लगी । बाबाजी ने गीले वस्त्र की पट्टी बांध ली। जब वे गांव में आए तो शोरगुल मच गया । प्रहार करने वाला पकड़ा गया और कड़ाह के नीचे दबा दिया गया । यह समाचार भूरजी महाराज तक पहुँचा 1