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आध्यात्मिक आलोक 324
लोगों ने उनकी परीक्षा करने की ठानी । एक बार जब वे इसी प्रकार की डीगे मार रहे थे, लोगों ने उनसे कहा अगर आप रात्रि के समय, श्मशान में जाकर पीपल के पेड़ में कील ठोंक कर आ जाएं तो समझें कि आप वास्तव में हिम्मतवर हैं । अन्यथा अपने मुंह से अपनी तारीफ के पुल बांधना कौन बड़ी बात है. ?
वह महाशय जैसे वस्त्र पहने थे, वैसे ही श्मशान पहुँच गए। बात उन्हें: चुभ गई थी और वे इस परीक्षा में सफल होकर अपना सिक्का जमा लेना चाहते थे। श्मशान में पहुँच कर उन्होंने पीपल के वृक्ष में कील भी गाड़ दी । किन्तु उतावलेपन में आदमी चूके बिना नहीं रहता । उतावलापन काम बिगाड़ता है । जब उसने पीपल के मूल में कील ठोकी तो कपड़े का एक पल्ला भी उस कील में दब गया। वहीं अपना पल्ला छुड़ाने लगा पर वह छूटा नहीं। उसने समझ लिया भूत ने मेरा पल्ला पकड़ लिया है । होशहवास गुम हो गए । भय का इतना तीव्र संचार हुआ कि वे भाई वहीं पर ठार हो गए।
धैर्य से काम लिया होता और अहंभाव मन में न आता तो उसका काम. बन जाता, परन्तु अधैर्य, अहंकार एवं जोश के कारण उसका काम बिगड़ गया।
सिंहगुफावासी मुनि के हृदय में भी अहंकार का विष घुला. हुआ था। वे. सोचते थे कि मेरे समान तपस्वी कौन है ? इस अहंकार की प्रेरणा से ही उन्होंने अनुमति चाही थी, मगर गुरुजी मौन रहे । वे जानते थे कि इसे सफलता मिलने वाली नहीं है । यह ईर्ष्या के वशीभूत होकर अब तक के किये पर पानी फेर देगा। तथापि हमेशा के लिए इसे अच्छी सीख मिल जाएगी | मैं अनुमति तो दें नहीं: सकता- इसके अधःपतन में कैसे निमित्त बन सकता हूँ ? मगर मना करना भी उचित नहीं प्रतीत होता । मना करूंगा तो इसके चित्त में संदा शल्य बना रहेगा और यह निश्शल्य साधना नहीं कर सकेगा। आवश्यक यह है कि कषाय का विष किसी प्रकार: धुल जाए। यह सब सोच कर गुरुजी मौन ही रहे.............
_____ अन्य मुनिजन भी वर्षाकाल में अपनी-अपनी साधना में लगने की बात सोचनें लगे । सिंहगुफावासी मुनि पाटलीपुत्र जा पहुंचे, जहां रूपकोषा का घर है। रूपकोषा का पूरा मुहल्ला था । यद्यपि उसने वेश्यावृत्ति का परित्याग कर दिया था। फिर भी लोग उसके यहां आते-जाते:थे । .
मुनि भी उसके घर पहुँचे । उसने मुनि का यथोचित सम्मान किया। उसके अनुपम रूप-लावण्य ने उसकी मधुरवाणी ने और विनम्रतापूर्ण व्यवहार ने मुनि के मन को आकर्षित कर लिया । मुनि ने उससे कहा-मुझे अपने भवन में चातुर्मास व्यतीत
न की आज्ञा दीजिए।