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आय्यात्मिक आलोक
323 भोजन किया जाएगा तो शरीर में गड़बड़ होगी, मन में अशान्ति होगी, प्रमाद आएगा
और साधना यथावत् न हो सकेगी । स्वाध्याय और ध्यान के लिए चित्त की जिस एकाग्रता की आवश्यकता है, वह नहीं रह सकेगी।
आनन्द ने जब व्रत ग्रहण किए तो भोजन सम्बन्धी अनेक मर्यादाएं भी स्वीकार की । उसका आहार शुद्ध है उसके पास ज्ञान का बल है, अतएव उसकी प्रगति के द्वार अवरुद्ध नहीं हुए हैं। जहां आत्मज्ञान का लोकोत्तर प्रकाश दैदीप्यमान रहता है वहीं साधना सही मार्ग पर चलती और फलती है ।
स्थूलभद्र मुनि अपने आत्मज्ञान के बल पर वह कार्य कर सके जिसे देव भी नहीं कर सकते । सिंहगुफावासी मुनि ने गुरु संभूति विजय से निवेदन किया कि मुझे भी वैश्या के घर में वर्षाकाल व्यतीत करने की अनुमति दी जाय । उन्हें ज्ञान नहीं है कि मुनि स्थूलभद्र ने कैसा जीवन व्यतीत किया है और किस सीमा तक विराग अवस्था प्राप्त करके काम को पराजित किया है । आवेश में चलने वाला व्यक्ति प्रायः असफल होता है । चाहे लौकिक साहस का काम हो, चाहे लोकोत्तर साहस का । भयपूर्ण स्थानों में विजय पाने का लौकिक कार्य हो या कामक्रोध आदि विकारों पर विजय पाने का आध्यात्मिक कार्य हो, जोश वाला व्यक्ति सफलता नहीं पाता । उस मुनि को इतना भी पता नहीं था कि स्थूलभद्र ने रूपकोषा के जीवन में ही महान् परिवर्तन कर दिया है।
जब उक्त मुनि ने अनुमति मांगी तो गुरुजी कुछ देर तक मौन ही रहे। वे समझ गए कि इसके मन में भावावेश खेल रहा है । यह स्थूलभद्र की बराबरी करने की ही भावना से कठोर साधना करना चाहता है । मगर स्थूलभद्र की योग्यता और वैराग्यवृत्ति की ऊंचाई का इसको ठीक-ठीक परिज्ञान नहीं है।
स्थूलभद्र का अभिनन्दन और अभिवादन सकल संघ का अभिनन्दन और अभिवादन है, ऐसी उदार भावना यदि उन तीनों मुनियों में होती तो वे ईर्ष्या के वशीभूत होकर ऐसा करने पर उतारू न होते । उन्हें यही पता नहीं कि जब साथी मुनि के गुणों का उत्कर्ष एवं सम्मान हो उनका मन सहन नहीं कर सकता तो वे दुर्जय कामवासना को उस हद तक कैसे जीत सकेंगे ! इतना दुर्बल हृदय क्या उस घोर परीसह को जीतने में समर्थ हो सकेगा ?
एक गांव में एक भाई अपने आपको बड़े साहसी मानते थे । वे अक्सर कहा करते-भूत का क्या भय है ? मैं भूत के लिए भी भूत हूँ । साहस का कोई भी कार्य कर सकता हूँ।