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आध्यात्मिक आलोक
उनके लोकोत्तर उपकार के भार से दब-सी गई । अब उसके चित्त की चंचलता दूर हो गई । मन पूरी तरह शान्त हो गया ।
अनुकूल निमित्त मिलने पर जीवन बड़ी तेजी के साथ आध्यात्मिकता में बदल जाता है ।
बन्धुओ ! जिस प्रकार भूख खाने से ही मिटती है, भोजन देखने या भोज्य पदार्थों का नाम सुनने से नहीं, इसी प्रकार धर्म को जीवन में उतारने से जीवन के समग्र व्यवहारों को धर्ममय बनाने से ही वास्तविक शान्ति प्राप्त हो सकती है । जिनका जीवन धर्ममय बन जाता है, वे परम शान्ति और समाधि के अपूर्व आनन्द को प्राप्त करके कृतार्थ हो जाते हैं ।