________________
[५३] भ्रमण पर अंकुश
'दुनिया दुरंगी है । परस्पर विरोधी तत्वों की विद्यमानता इसकी विशेषता है । यहां धर्म है तो अधर्म भी है, नीति है तो अनीति भी है, सुजन हैं तो दुर्जन भी हैं, जीव है तो अजीव भी है, साधक तत्त्व हैं तो बाधक तत्व भी मौजूद हैं। कोई किसी कार्य में प्रवृत्त हो, तो उसे पहले यह समझ कर चलना चाहिए कि मेरे कार्य में अनेक बाधाएं उपस्थित होंगी । बाधाओं के उपस्थित होने पर विचलित न होने की क्षमता और संकल्प का बल बटोर कर चलने वाला ही अपने कार्य में सफल होता
बाधक कारणों का कार्य बाधा पहुँचाना है किन्तु साधक यदि सजग है, उसके संकल्प में कहीं कोई कमजोरी नहीं है तो कोई भी बाधक तत्त्व उसके मार्ग को न अवरुद्ध कर सकता है और न उसे विमुख ही बना सकता है ।
___ अध्यात्म-साधना के पथ में क्या-क्या बाधाएं उपस्थित हो सकती हैं और उन पर किस प्रकार विजय प्राप्त करनी चाहिए, इस सम्बन्ध में इस क्षेत्र के अनुभवी साधकों ने पर्याप्त विचार किया है । प्रधान रूप से वे बाधक तत्त्व दो हैं - प्रमाद और कषाय ।
प्रमाद और कषाय का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रमाद, कषाय का मार्ग प्रशस्त करता है । वह साधक को पहले असावधान बनाता है और फिर कषाय आ धमकता है। कषाय का कार्य साधना में रुकावट डालना है, गतिरोध उत्पन्न करना है और कभी-कभी वह गाड़ी को उलट भी देता है। वह साधक को विपरीत दिशा में भी ले जाता है । इस प्रकार प्रमाद और कषाय दोनों सम्यग्दर्शन और विरतिभाव की निर्मलता में बाधक हैं। इन्हीं के प्रभाव से मनुष्य व्रत के विषय में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार और अनाचार का सेवन करता है। जो लोग विषय और कषाय के पंजे में पड़े रहते हैं, उनको शास्त्र ज्ञान देना भी कठिन होता है।