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आध्यात्मिक आलोक
281 "नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः ।" शस्त्र आत्मा का छेदन नहीं कर सकते, आग उसे जला नहीं सकती । कोई भी भौतिक पदार्थ आत्मा का कुछ भी विगाड़ नहीं कर सकता । जो वहिरात्मा हैं, शरीर को अपना समझते हैं, वे ही विष और शस्त्र से भयभीत होते हैं । जिन्होंने आत्मा के शुद्ध स्वरूप को पहचान लिया है, जो पौद्गलिक देह से आत्मा को परे मानते हैं, उन्हें शरीर का विनाश होने पर भी भय नहीं होता।
सांप की वांबी पर ध्यान जमाने वाले योगी ऐसे ही थे । वे शरीर में स्थित होने पर भी अपने आपको शरीर से भिन्न समझते थे । अतएव सर्प से उन्हें कोई भव नहीं था । आत्मज्ञान वास्तव में अनन्त शक्ति का स्रोत है, केवल पर्दा हटाने की आवश्यकता है । अगर हम इस पर्दे को हटा सकें तो अनन्त आनन्द हमारे अन्दर ही किलकारियां मारने लगेगा।