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आध्यात्मिक आलोक
279 मशीनों की पूर्ति के लिए धन कहां से दिया जाय ? इसका एक रास्ता पशु-धन है। एक समय भारतवासी सादा जीवन व्यतीत करते थे पर विदेशों का ऋण नहीं था मगर आज विचित्र स्थिति बन गई है । नन्हें-नन्हें बच्चों को दूध न मिले और गोमांस विदेशों में भेजा जाय। यह सब आवश्यकताओं को सीमित न रखने का फल है ।
प्राचीन काल में कहावत थी - 'यथा राजा तथा प्रजा ।' अब प्रजातन्त्र • के युग में यह कहावत बदल गई है और 'यथा प्रजा तथा राजा' के रूप में हो गई
है। ऐसी स्थिति में प्रजा को जागृत होना चाहिए । अगर प्रजा जागृत रहेंगी तो शासक वर्ग को भी जागृत रहना पड़ेगा । प्रजा में अपनी संस्कृति के रक्षण की भावना बलवती होगी तो वह ऐसी सरकार ही नहीं बनने देगी जो भारतीय-संस्कृति और सभ्यता की जड़ें उखाड़े और भारत की धार्मिक विशेषता का हनन करे । आज सरकार की ओर से हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है, यह धर्मप्रिय जनता को विशेष रूप से सोचने योग्य और प्रतिकार करने योग्य मुद्दा है । प्रत्येक अहिंसा प्रेमी व्यक्ति को, फिर वह किसी भी धर्म का अनुयायी क्यों न हो, संगठित होकर निश्चय करना पड़ेगा कि हम देश की संस्कृति के विरुद्ध कोई कार्य नहीं होने देंगे।
बन्धुओ । करोड़ों निरपराध और मुक प्राणियों के प्राण बचाने का प्रश्न है और इसमें व्यक्तिगत स्वार्थ किसी का नहीं है । अतएव इस क्षेत्र में काम करने वाले कम मिलते हैं। किन्तु मैं विश्वासपूर्वक कहना चाहता हूँ कि इस कार्य से आपको मानसिक शान्ति और सन्तोष प्राप्त होगा। अगर आप चाहते हैं कि देश में हिंसा न बढ़े तो प्रत्येक को अपनी आवश्यकताओं को सीमित करना होगा । महाहिंसा से बनी वस्तुओं का उपयोग त्यागना पड़ेगा। वृद्ध और असमर्थ जानवरों का बेचना बन्द करना होगा और गोशाला जैसे संस्थानों में उन्हें रखने की व्यवस्था करनी होगी । गोशाला की आय के लिए दुधारू पशु ही रखे जायं, यह भावना गलत है । आय के लिए दूसरे उपाय सोचे जा सकते हैं परन्तु असमर्थ पशुओं का विक्रय बन्द कर उनका रक्षण तो गोशालाओं का मुख्य लक्ष्य है। इसको नहीं भूलना चाहिए । घर-धनी (स्वामी) अगर अपने जानवरों का पालन-पोषण न कर सके तो संस्थाएं उनकी रक्षा की व्यवस्था करें जिससे वे कत्लखाने में न जा सकें । पशु कत्लखाने में न जाएं, इस प्रकार की सावधानी रखी जाए, तभी हिंसा रोकी जा सकती है।
अगर व्यक्ति तन-धन सम्बन्धी ममता को मोड़ ले तो व्यवहार और परमार्थ का कोई कार्य होना अशक्य नहीं है । ममता हटा लेने या कम करने से पाप रुक सकता है । साधक तन, मन और धन से ममता हटा ले तो उनसे आदर्श कार्य की सिद्धि हो, इसमें शंका ही क्या है ?