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आध्यात्मिक आलोक यह सत्य है कि प्रत्येक मनुष्य सहसा पूर्ण ब्रह्मचर्य का परिपालन नहीं कर सकता तथापि सम्पूर्ण त्यागी साधुओं के लिये पूर्ण ब्रह्मचर्य का अनिवार्य विधान है, और गृहस्थ के लिए स्थूल मैथुन त्याग का विधान किया गया है । सद्गृहस्थ वही कहलाता है जो पर-स्त्रियों के प्रति माता और भगिनी की भावना रखता है। जो पूर्ण ब्रह्मचर्य के आदर्श तक नहीं पहुँच सकते, उन्हें भी देशतः ब्रह्मचर्य का तो पालन करना ही चाहिए । परस्त्रीगमन का त्याग करने के साथ-साथ जो स्वपत्नी के साथ भी मर्यादित रहता है, वह विशेष रूप से देशतः ब्रह्मचर्य का पालन करके ओजस्वी, और तेजस्वी बनने के साथ संयम का पालन करता है । सद्गृहस्थ को ज्ञानीजन चेतावनी देते हैं कि स्थूल मैथुन का भी त्याग नहीं करोगे तो स्थूल. हानि होगी । सूक्ष्म और आन्तरिक हानि का भले ही हर एक को पता न लगे पर स्थूल अब्रह्म के सेवन से जो स्थूल हानियां होती हैं, उन्हें तो सारी दुनिया जानती है । जिसने अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर लिया है, जिसका मनोबल प्रबल है और जो अपना इहलोक परलोक सुधारना चाहता है वही ब्रह्मचर्य का पालन करता है । इसके विपरीत दुर्बल हृदय-जन अहिंसा आदि नतों का भी पालन नहीं कर सकता । सत्य का निर्वाह भी निर्बल नहीं कर सकता । अहिंसा और सत्य के पालन के लिए मनोबल और धैर्य की आवश्यकता होती है। इन्हें उत्पन्न करने वाला और सुरक्षित रखने वाला ब्रह्मचर्य है।
जगत् में जितने भी महापुरुष हुए हैं उन सभी ने एक स्वर से ब्रह्मचर्य की महिमा का गान किया है । ब्रह्मचर्य की साधना में अद्भुत प्रभाव निहित है.। देवता भी ब्रह्मचारी के चरणों में प्रणाम करके अपने को कृतार्थ मानते हैं. जैसा प्रभु महावीर ने भी कहा है
"देव दाणवं गन्धब्बा जक्ख रक्खस किंतरा।
बम्भयारिं नम सन्ति दुक्कर जे करति ।। ब्रह्मचर्य ऐसी साधना है कि उसकी रक्षा के लिये कतिपय ान्यमा का पालन करना आवश्यक है। धान्य की रक्षा के लिए जैसे वांड की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए भी बाड़ों की आवश्यकता है। शास्त्रों में ब्रह्मचर्य के सहायक एवं रक्षक नियमों की ऐसी बाड़ों की संख्या नौ बतलाई गई है।
जहां स्त्री, हिंजड़ा और पशु निवास करते हों, वहां ब्रह्मचारी पुरुष को नहीं रहना चाहिए । ब्रह्मचारिणी स्त्री के लिए भी यही नियम जाति-परिवर्तन के साथ लोग होता है । इसी प्रकार मात्रा से अधिक भोजन करना, उत्तेजक भोजन करना, कामुकतावर्धक बातें करना, विभूषा-श्रृंगार करना और इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति,