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आध्यात्मिक आलोक
251 अनुचित-अनैतिक लाभ लेने की प्रवृत्ति नहीं रखनी चाहिए । तोलने के बाटों का तिलोकचन्द (तीन पाव), शेरसिंह (सेर भर ), पचानदास ( सवा सेर ), किलोचन्द (एक किलोग्राम) आदि नामकरण करके लाभ लेने की प्रवृत्ति अगर कोई व्यापारी रखता है तो वह अपना इहलोक और परलोक बिगाड़ता है।
तोलने और नापने के साधन सही न रखना राजकीय दृष्टि से भी अपराध है। मापते तोलते समय उंगली या पांव के अंगूठे से अन्तर करने वाला पापी है। छल या धोखा करके तोल नाप में घट-बढ़ कर देना पाप की प्रवृत्ति है। जिसने अचौर्य व्रत को अंगीकार किया है, वह इस प्रकार की प्रवृत्ति से सदा दूर ही रहेगा। कपड़ा, भूमि, खाद्य एवं पेय वस्तु आदि गजों, मीटरों एवं किलों आदि से मापे-तोले जाते हैं। इन माप-तोलों में न्यूनाधिकता करना, छल-कपट करना इस व्रत का दूषण है।
छल-कपट का सेवन करके, नीति की मर्यादा का अतिक्रमण करके और राजकीय विधान का भी उल्लंघन करके धनपति बनने का विचार करना अत्यन्त गर्हित और घृणित विचार है । ऐसा करने वाला कदाचित् थोड़ा-बहुत जड़-धन अधिक सचित कर ले मगर आत्मा का धन लुटा देता है । और आत्मिक दृष्टि से वह दरिद्र बन जाता है । लौकिक जीवन में वह अप्रामाणिक माना जाता है और जिस व्यापारी की प्रामाणिकता (साख) एक दार नष्ट हो जाती है उसे लोग अप्रामाणिक समझ लेते हैं। उसको व्यापारिक क्षेत्र में भी हानि उठानी पड़ती है। आप भली-भांति जानते होंगे कि पैठ अर्थात् प्रामाणिकता की प्रतिष्ठा व्यापारी की एक बड़ी पूंजी मानी जाती है । जिसकी पैठ नहीं वह व्यापारी दिवालिया कहा जाता है । अतएव व्यापार के क्षेत्र में
भी वही सफलता प्राप्त करता है जो नीति और धर्म के नियमों का ठीक तरह से निर्वाह करता है।
श्रावक धर्म में अप्रामाणिकता और अनैतिकता को कोई स्थान नहीं है । व्यापार केवल धन-संचय का ही उपाय नहीं है। अगर विवेक को तिलांजलि न दे दी जाय और व्यापार के उच्च आदर्शों का अनुसरण किया जाय तो वह समाज की एक बड़ी सेवा का निमित्त भी हो सकता है । प्रजा की आवश्यकताओं की पूर्ति करना अर्थात् जहां जीवनोपयोगी जो वस्तुएं सुलभ नहीं हैं, उन्हें सुलभ कर देना व्यापारी की समाज सेवा है किन्तु वह सेवा तभी सेवा कहलाती है जब व्यापारी अनैतिकता का आश्रय न ले, एकमात्र अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर अनुचित लाभ न उठाव । संक्षेप में कहा जा सकता है कि श्रावक धर्म का अनुसरण करते हुए जो व्यापारी व्यापार करता है, वह समचित द्रव्योपार्जन करते हुए भी देश और समाज की बहुत बड़ी सेवा कर सकता है ।