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आध्यात्मिक आलोक रहा है। आठ स्थान से बांका होने से लोग मुझे अष्टावक्र कहते हैं ।" सबने
अष्टावक्रजी को आत्मज्ञान सुनाने के लिये कहा । आत्म-ज्ञानी का काम भीतर देखना है। गुणियों के शरीर को देखकर घृणा करने से पाप लगता है। संस्कृति की दृष्टि से इसका समाज पर भी बुरा असर पड़ता है। फिर गुणों का महत्व भूल कर यदि गुणी का तिरस्कार किया गया तो उसके हृदय को भी चोट लगती है। विदेशी लोग अनाथों तथा कोढ़ियों की व्यवस्था करते हैं। कभी कोई अनाथ यदि उनके हाथ में आ जाये, तो वे उनका बड़ा आदर करते हैं। फलस्वरूप लाखों राम, कृष्ण, महावीर के मानने वाले आज अनार्य संस्कृति के उपासक बन गये और बनते जा रहे हैं।
हर एक भारतीय और जैन में धर्म वत्सलता भी होनी चाहिये। साधु-संतों की उन्नति देखकर प्रसन्न होना यह समूहगत वत्सलता है। संघ में इसी प्रकार स्वधर्मी के प्रति भी वत्सलता बढ़नी चाहिये। प्रेम से साधक कठोर साधना भी कर सकता है। साधक में साधना की ओर लगन हो, और साथ ही समाज की उनके प्रति सद्भावना हो तो मानव सहज ही अपना उत्थान कर सकता है।
___ यह कहा जा चुका है कि रूपकोषा के यहां काम विजय की भावना से जाने वाले स्थूलभद्र को गुरु ने चातुर्मास की अनुमति दे दी। गुरु में वत्सलता थी
और शुभ प्रेम के कारण वत्सलता जीवन को आगे बढ़ाती है एवं मोह जीवन को गिराता-फंसाता है। गुरु ने स्थूलभद्र से कहा कि काम विजय करके शीघ्र आ जाना। गुरुवाणी से उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। और साहस द्विगुणित हो गया।
स्थूलभद्र अपनी साधना के लिये रुपकोषा के घर पहुँचे। रूपकोषा ने जब स्थूलभद्र को देखा तो उसके मन में तर्क-वितर्क होने लगा। उसने आसन छोड़कर स्थूलभद्र का हार्दिक स्वागत किया और कहा: "प्रियतम ! आइये, आइये, जीवन को सरसाइये पर यह वैरागी का सा अटपटा वेष कैसा ?"
धर्म स्थान में विलास श्रृंगार करके आना दूषण है, परन्तु रिवाज का रूप होने से आज यह साधारण बात हो गई है। धर्म स्थान में घृणा व्यंजक, अस्वच्छ
और अशुद्ध मलादि से लिप्त 'वस्त्र नहीं हो, वस्त्र तड़कीले-भड़कीले भी नहीं होने चाहिये। वहाँ के लिये सादा वेष ही भूषण है। परन्तु वेश्या तो रागी ठहरी । अतः उसे वैरागी का वेष खटक गया। लोकनीति के अनुसार राग की जगह में राग का रूप हो, और वैराग्य की जगह में वैराग्य का तो अच्छा लगता है। वेश्या ने कहा-"आपका आना मुझे अच्छा लगा, परन्तु यह विरागी वेष अरुचिकर जंचा।"
रूपकोषा स्थूलभद्र को सम्मानित कर रंगशाला में ले जाती है और सुन्दर वस्त्र धारण करने का आग्रह करती है। आज स्थूलभद्र का परीक्षा काल है। कुशल
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