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आध्यात्मिक आलोक तीसरा दोष है योग्य अधिकारी की अनुमति प्राप्त किये बिना देश-प्रदेश के हितार्थ किये गये किसी निषिद्ध क्षेत्र विशेष में प्रवेश करना । ऐसा करने से नागरिक की प्रामाणिकता में बाधा पहुँचती है । .
एक देश-प्रदेश की सीमा दूसरे देश-प्रदेश से मिली होती है । किसी देश-प्रदेश । में एक वस्तु का मूल्य अधिक होता है तो दूसरे में उसी का मूल्य अल्प होता है । ऐसी स्थिति में कुछ लोभ अथवा धन-लोलुपतावश अवैध रूप से उस वस्तु को बहुमूल्य वाले देश-प्रदेश में पहुँचाया करते हैं । इस प्रकार का व्यापार आज तस्कर व्यापार कहलाता है । आधुनिक कानून की दृष्टि में भी यह कृत्य चोरी में गिना जाता है । जैन-शास्त्र सदा से ही चौर्य-व्यापार गिनाता आया है। यह 'विरुद्ध राज्यातिक्रम' होने से चोरी है और इससे अचौर्य व्रत दुषित हो जाता है। यों भी वैध अनुमति के बिना किसी राज्य प्रदेश की सीमा का उल्लंघन करना अतिचार है, क्योंकि वह दूसरे राज्याधिकारियों के लिए शंका का कारण बन जाता है । ऐसा व्यक्ति, जो किसी दूसरे देश का प्रजाजन है, यदि किसी अन्य देश में चला जाय तो उसे गुप्तचर समझ कर गिरफ्तार कर लिया जाता है । हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की सीमा के उल्लंघन से आधुनिक काल में ऐसी सैकड़ों घटनाएं घटित हुई और हो रही हैं।
अमेरिका के लिए रूस का और रूस के लिए अमेरिका का गगनमण्डल बिना अनुमति के निषिद्ध क्षेत्र है, अतएव उसमें वायुयानों की उड़ान निषिद्ध है। उसमें भेद लेने की आशंका हो जाती है । यही कारण है कि एक देश के गगनमण्डल में बिना अनुमति प्राप्त किये यदि दूसरे देश का विमान उड़ता है तो उसे मार गिराया जाता है। इस प्रकार स्थलगत, जलगत और गगनगत, तीनों सीमाओं का अतिक्रमण करना व्रतों का दोष है । इसी प्रकार कोई स्वार्थ के वशीभूत होकर यदि देश की सुरक्षा के नियमों का उल्लंघन करता है एवं राजकीय नियमों के विरुद्ध कार्य करता है तो वह भी तीसरे व्रत का अतिचार-दोष है।
राजकीय विधान के अनुसार कर न देना, सीमा प्रवेश का टैक्स न चुकाना, बिना टिकिट रेलयात्रा करना आदि भी इस व्रत के अतिचारों में सम्मिलित हैं। यह सब चोरी के ही विविध रूप हैं। ऐसा करने से मनुष्य नैतिक दृष्टि से पतित होता है और जो नैतिक दृष्टि से पतित हो वह धार्मिक दृष्टि से-उन्नत कैसे हो सकता है? नैतिकता की भूमिका पर ही धार्मिकता की इमारत खड़ी होती है । अतएव जो नीतिभ्रष्ट है, वह धर्म से भी भ्रष्ट होगा ।
नीतिमान सद्गृहस्थ इन सब अतिचारों से बचकर रहता है । फिर श्रावक का तो कहना ही क्या ? उसका स्तर बहुत ऊंचा और सम्मानित है । यदि श्रावक