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आध्यात्मिक आलोक लिए भी निर्जरा का प्रवाह बन्द नहीं होता और अनादिकाल से यह क्रम बराबर चल रहा है, फिर भी आत्मा निष्कर्म नहीं बन सकी । इसका एकमात्र कारण यही है कि प्रतिक्षण, निरन्तर नूतन कर्म वर्गणाओं का आत्मा में प्रवेश भी होता रहता है। इस प्रकार 'अन्धी पीसे कुत्ता खाय' वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। एक ओर निर्जरा के द्वारा कुछ कर्म पृथक् हुए तो दूसरी ओर आस्रव के द्वारा नवीन कर्मों का आगमन हो गया ! आत्मा वहीं की वहीं, जैसी की तैसी । आत्मा की अनादि कालीन मलिनता का यही रहस्य है।
तो फिर किस प्रकार कर्म से मुक्ति प्राप्त की जाय ? साधक के समक्ष यह महत्वपूर्ण प्रश्न है। ज्ञानियों ने इस प्रश्न का बड़ा ही सुन्दर और युक्तिसंगत उत्तर दिया है । सरोवर के जलागमन के स्रोत निरुद्ध कर दिये जाएं नया पानी आने से रोक दिया जाय और पूर्वसंचित जल उलीचने आदि से (निर्जरा द्वारा) बाहर निकल जाने पर सरोवर रिक्त हो जाएगा । कर्मों के आगमन स्रोत यानि आस्रव को रोक दिया जाय और निर्जरा का क्रम चालू रखा जाय तो आत्मा अन्ततः निष्कर्म स्थिति, जिसे मुक्ति भी कहते हैं, प्राप्त कर लेगा।
यहां एक बात ध्यान रखने योग्य है । तालाब में जो जल आता है वह ऊपर से दिखलाई देने वाले स्थूल स्रोतों से ही नहीं किन्तु भूमि के भीतर जो अदृश्य सूक्ष्म स्रोत हैं, उन से भी आता है । कचरा निकालते समय हवा की दिशा देखकर कचर निकाला आता है । ऐसा न किया जाय तो वह कचरा उड़ कर फिर घर में चला आता है। किन्तु घर के द्वार बन्द कर देने पर भी बारीक रजकण तो प्रवेश करते ही रहते हैं । इसी प्रकार साधना की प्राथमिक और माध्यमिक स्थिति में कर्मों के स्थूल स्रोत बन्द हो जाने पर भी सूक्ष्म स्रोत चालू रहते हैं और उनसे कर्म-रज आती रहती है। किन्तु जब साधना का परिपाक अपनी चरम परिणति में होता है तो वे सूक्ष्म स्रोत भी अवरुद्ध हो जाते हैं और एकान्त निर्जरा का तीन प्रवाह चालू हो जाता है।
साधना की वह उत्कृष्ट स्थिति धीरे-धीरे प्रचण्ड पुरुषार्थ से प्राप्त होती है । आज आप के लिए वह दूर की मंजिल है। आपको कर्मासव के मोटे द्वार अभी बन्द करने हैं । वे मोटे द्वार कौन से हैं ? शास्त्र में पांच मोटे द्वार कहे गए हैं-हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह । पांच आस्रव भी ये ही कहलाते हैं ।
प्रश्न हो सकता है कि प्राणातिपात यदि पाप है तो उसे, आस्रव क्यों कहा गया है ? पाप और आस्रव में भेद है । जब तक प्राणातिपात की कारण रूप हिंसा चल रही है, तब तक वह क्रिया है, आसवे है और कार्य रूप में पूरा हो