________________
[३७] बंध का कारण और मनोजय संसार में बंध के प्रमुख दो कारण हैं-एक अज्ञान और दूसरा मोह । अन्य विभिन्न कारण इसमें अन्तर्निहित हो जाते हैं । अज्ञान से मिथ्यात्व आता है और विषय कषाय एवं प्रमाद मोह में गर्भित हो जाते हैं । अज्ञान तथा मोह से संसार के दुःख सांगर में डूबा हुआ मानव जब ज्ञान का प्रकाश पा लेता है, तो प्रमाद छूट जाता है और आत्मा ऊर्ध्वमुखी हो जाती है । अज्ञान और प्रमाद पुरुषार्थ से दूर हो सकते हैं । ये मानव की निष्क्रियता के दुष्परिणाम हैं । यदि योग्य पुरुषार्थ से काम नहीं लिया गया, तो कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो आपके प्रमाद को दूर कर सके । जैसे काई, शैवाल आदि जलाशय के जल की सतह को ढंक लेते हैं, किन्तु वायु के झोंके से जब शैवाल हट जाते हैं, तब जल का खुला भाग प्रगट हो जाता है। इसी प्रकार यदि मनुष्य ज्ञान की आंधी चलावे और पुरुषार्थ करे, तो अज्ञान एवं मोह की काई दूर हो सकती है।
आनन्द श्रावक ने जीवन शुद्धि का संकल्प लेकर प्रभु महावीर के चरणों में नियम लिया कि मैं प्रमाद द्वारा होने वाले अनर्थ दण्ड से अलग रहूंगा तथा विषय कषाय के वेग में कोई काम नहीं करूंगा । साथ ही मन और आत्मा को उलझाने वाली विकथा से यथा शक्य दूर रहूंगा । इस तरह नियमों के घेरे में मन को डालकर उसने अपने को संयत बनाया ।
वह जानता है कि मनुष्य के जीवन में यदि प्रमाद ने प्रश्रय पा लिया तो वह त्याज्य को ग्राह्य और ग्राह्य को छोड़ने योग्य समझ लेगा । प्रमाद से आचरित अनेक अनर्थ उसके द्वारा हो सकते हैं तथा असत्य वचन बोलने में भी वह नहीं हिचकिचाएगा । किसी को चोर, बेईमान आदि कह देगा तथा अकारण सबसे द्वेष और वैर बढ़ा लेगा । इस परिस्थिति में आदमी नहीं बदला, मगर बात बिलकुल बदल गई ।