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आध्यात्मिक आलोक दूसरे शिष्य ने कुएं की पाल पर चार माह तपस्या करने की अनुमति मांगी। धर्म महाजनी सौदा नहीं है । साधक शूरवीर होता है । वह जिस साधना के मार्ग पर पैर डालता है वहां अडिग रहता है । कई दिनों का भूखा सर्प भी जैसे पुंगी की आवाज पर नाचने लगता है वैसे ही भक्त भी भगवान की वाणी पर नाच । उठता है। कुएं पर ध्यान लगाने वाले को अप्रमादी होना चाहिए । इन्हें भी गुरु ने योग्य समझा और .साधना की अनुमति दे दी।
तीसरे शिष्य ने कहा कि मैं सांप की बांबी पर तपस्या करना चाहता हूं। इसको भी गुरुजी ने अनुमति दे दी । अब तक स्थूलभद्र यह सब रंग देखते रहे । तीन शिष्यों को स्वीकृति मिल गई तब स्थूलभद्र आए और बोले, "गुरुदेव ! आपकी आज्ञा हो तो मैं चार माह रूपकोषा के यहां रहकर तपस्या करना चाहता हूँ।" स्थूलभद्र की गंभीरता तथा धैर्य को देखकर संभूति विजय ने कहा-“साधु का मूलधन साधना एवं संयम प्रधान है, इसको लक्ष्य में रखते हुए, जाओ साधना को सफल कर आओ।"
इस प्रकार महामुनि सम्भूति ने चारों शिष्यों को कठिन साधना की अनुमति दे दी । इस प्रकार यदि हर एक मनुष्य जीवन में पवित्र साधना को अपनावेगा, तो वह अपना जीवन ऊंचा उठा सकेगा ।