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आध्यात्मिक आलोक. और वेश्यागामी होकर भी सुखी है और एक सज्जन और दयालु पुरुष का पुत्र सदाचरण रखते हुए भी दु:खी, दीन और संत्रस्त है । यह अन्तर शुभ कर्म की स्थिति तक ही कायम रहेगा फिर तो “अधेरी रात" वाली बात होकर रहेगी, सत्पुरुषों ने कहा है
जब लग तेरे पुण्य का, पहुँचे नहीं करार।
तब लग तुझको माफ है, अवगुण करो हजार ।। . किसी व्यक्ति का संचित शुभ कर्म नहीं है और वह यदि शुभ कर्म कर रहा है तो अपने जीवन का निर्माण कर रहा है । यदि कोई अनुसूचित-निम्न कहे जाने वाले वर्ग का भी व्यक्ति है पर वह यदि सुमार्गी है, तो वह समाज में इज्जत पाएगा, लौकिक दृष्टि से मान पाएगा और जीवन सुधार सकेगा | आम का झाड़ लगाने से, तुरन्त ही नहीं फलता, उसे वर्षों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है किन्तु अफीम धतूरा उससे जल्दी फल जाता है । ज्ञानी यह समझ कर विचलित नहीं होता । कुमार्गी यदि सुख पा रहा है तो वह सदा सुख पाता ही नहीं रहेगा । कौआ और हंस दोनों एक साथ रहे और भले ही कौआ उड़कर थोड़ी देर के लिए गिरि शिखर पर बैठ जाय तब भी सम्मान हंस को ही मिलेगा।
स्थूलभद्र ने राजमन्त्री का पद छोड़कर गुरु सेवा में जीवन अर्पित कर दिया। शिष्य और सेवक का कर्तव्य है कि वह स्वामी के मन के अनुकूल रहे । तदनुकूल स्थूलभद्र ने भी गुरु सम्भूति विजय के चरणों में रहकर सेवक के समान जीवन व्यतीत करना प्रारम्भ किया । वह रागी के बदले विरागी और परिग्रही के बदले अपरिग्रही बन गया । सेनापति के संकेत पर चलने वाला सैनिक-दल दुन्ति सेना से भी विजय प्राप्त कर लेता है । स्थूलभद्र ने गुरु चरणों में रहकर ज्ञान ध्यान में मन लगाया । जीवन का रूप बदल कर उसने रूपकोषा को भुला दिया, जिसके लिए कभी अपना जीवन अर्पण किए हुए था । उसने ज्ञान ध्यान में पूर्ण तन्मयता लगा दी । सम्भूति विजय मुनि के चरणों में लगकर उसने साधना के कठिन मार्ग में दृढ़ता से पैर बढ़ाया। सम्भूति विजय के विविध शिष्यों में साधना की स्पर्धा थी । पवित्र भावना के साथ ज्ञान ध्यान की वृद्धि हो, तो मुनि जीवन की गुरुता का क्या कहना
एक बार सम्भूति विजय के चार शिष्य चातुर्मास की आज्ञा लेने गुरु के पास आए । एक शिष्य ने शेर की गुफा के पास चार माह तपस्या करने की अनुमति मांगी । जव शिष्य इस प्रकार कठिन साधना करने की अनुमति माग तो गुरु का यह काम है कि वह शिष्य की क्षमता जाने, अन्यथा शिष्य के साथ गुरु की भी बदनामी होगी । योग्य समझकर उस शिष्य को गुरु ने तपस्या की अनुमति दे दी।